Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 23
________________ चतुः प्रकारः, कथमित्याह - चक्खुअचक्खुओही चक्षुदर्शनमचक्षुदर्शनमवधिदर्शनं, अह अथ केवलं केवलदर्शनं चेति, णेयं ज्ञातव्यमिति । अत्र चक्षुर्दर्शनमेकप्रकारम्, अचक्षुदर्शनं स्पर्शरसगन्ध श्रोत्र भेदाच्चतुर्भेदम् । उत्थानिका : उस जीव के दो उपयोगों को कहते हैं दिव्यसंगह गाथार्थ : [ उवओगो ] उपयोग [ दुवियप्पो ] दो प्रकार का है [ दंसण ] दर्शन [च] और [ णाणं ] ज्ञान । [ दंसणं ] दर्शनोपयोग [ चदुधा ] चार प्रकार का है [ चक्खु ] चक्षुदर्शन[ अचक्खु ] अचक्षुदर्शन [ ओही ] अवधि [ दंसणं ] दर्शन [ अह ] और [ केवलं ] केवलदर्शन, ऐसा [ णेयं ] जानना चाहिये ॥ 4 ॥ टीकार्थ: उवओगो दुवियप्पो उपयोग दो प्रकार का है। किस प्रकार ? सो कहते हैं दंसणणाणं च दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग। उस में दर्शनोपयोग चदुधा चार प्रकार का है। किस प्रकार ? सो कहते हैं- चक्खुअचक्खुओही चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अह और केवलं केवलदर्शन णेयं जानना चाहिये। इस में चक्षुदर्शन एक प्रकार का है, अत्रक्षुदर्शन स्पर्शन - रसनाघ्राण-चक्षु के भेद से चार प्रकार का है ।। 4 ॥ अचक्खु दंसणमह भावार्थ : दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग के भेद से उपयोग दो प्रकार का है। उन में से दर्शनोपयोग चक्षुदर्शनोपयोग, अचक्षुदर्शनोपयोग, अवधिदर्शनोपयोग तथा केवलदर्शनोपयोग इस तरह चार प्रकार का है || 4 || पाठभेद : ल = - अचक्खू दंसणमध ॥ 4 ॥ 10

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