Book Title: Dravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 07
Author(s): Yashovijay
Publisher: Shreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 17
________________ વિષય ५४ r २३७९ x ३९२ ...... २३८१ • विषयमाहा. વિષય પૃષ્ઠ वयनानुठान समापत्तिनिमित्त .................. २३७७ ध्यानयोn inनो सार ................. २३८७ ज्योति९२४थी. यासाइल्य.......... रासाय....................२३७७ | | शराछो तो ध्यान .......... ३८७ त्रा १३५ सभापत्तिने समो ....... ३७७ शुद्धस्वरूपावस्थानोपायोपदर्शनम ...... २३८८ स्वरूप-फल-हेतुमुखेन समापत्तिनिरूपणम् ......... सभापत्तिन। शि५३ ५डायासे........ ..... २३८८ एं ४ मा२॥ द्वा२॥ ५॥२५ : ध्यानापि ......... ३७८ गुणश्रेणिसमारोहेण घातिकर्मक्षयः ............. ........ २३८९ समापत्तिपर्यायवाचकशब्दनिर्देशः ...................... २३७९ | सभापत्तिथी भुतिपाति ..................... २३८९ ફલમુખે સમાપત્તિને ઓળખીએ जिनवचनश्रद्धालोः गुणप्राप्तिः ....................... २३९० 'समापत्ति'- समानार्थ अन्य २०......... २३७९ સમાપત્તિ દ્વારા શુક્લધ્યાન કર્મનાશક, ............. २३९० निगम लिनेश्वरने याबावे........ ......... २३७९ भा५५u (मरावतस्व३५ने प्रावी ............ २३९० जिनस्वरूपोपयुक्तस्य परमार्थतः जिनरूपता ..... स्वात्मप्रकाशरूपम् आत्मतत्त्वं शास्त्राऽप्रकाश्यम् .. २३९१ सभापत्तिनी विया२९॥ ............. ........... २३८० अवसरे शास्त्रसंन्यास अड। ४२वो............. सभापत्ति: ५४सिनी हरिभा ........ .... २३८० मात्मस्वभाव- माहात्म्य प्रावीमे ............ ३९१ समापत्तिः निर्वाणदायिनी ......... शुद्धचैतन्यसन्मुखतया भाव्यम् ......................... ........२३८१ પરમ સમાપત્તિને સમજીએ . ............ ઉપયોગને ચોખ્ખો કરીએ . ३९२ સમાપત્તિને ઓળખીએ २३८१ | मुक्तिस्वरूपप्रकाशनम् ..... २३९३ समापत्तिस्वरूपद्योतनम् .. .......................... विधि-निषेधथी मुतिस्प३५ ................. સમાધિતત્રમાં સમાપત્તિ कवितामृतकूपवचनसंवादः ....................... २३९४ .....२३८२ भरतना ध्याने भरत बनी ४शो ......... .... २३८२ સજ્જનો ગુણગ્રાહી २३९४ શ્લેષ અલંકારથી ગર્ભિત વિચારણા ........... २३९४ ध्यानस्वरूपद्योतनम् ............. २३८३ खलस्वरूपप्रकाशनम् . ..................... सर्वत्र नियनने सागरो.. हुननावीवो !...................... २३९५ वयनानुठानने मोगली ...... .२३८३ हुन दूधभांथी पो२। 5ढे !. .................... २३९५ ધ્યાનના ચાર માર્ગ ....२३८३ भगवद्वाणी गुणिजनादियशोदात्री .................... २३९६ समापत्तौ पुनरुक्तिः निर्दोषा ...................... ........२३८४ श्रीसंघने यशोवृष्टि .... .... २३९६ ઈતિહાસની અટારીએથી. 5६२नी भू५ छो31, ४६२८॥43 511 शो ....... २३९६ समापत्तिः विविधस्वरूपा ......... २३८५ | ग्रन्थनवनीतोपदर्शनम् ...................................२३९७ समापत्ति-आपत्ति-संपत्तिने भीगणी........... अंथनिष्कर्ष ......... ..... २३९७ सहितsulel माध्यस्थ्यपरिnि = समापत्ति .... २३८५ तात्वि आत्मसाक्षा२नो मातरिश भार्ग .......२३९७ ज्ञानयोगेन समापत्तिः सुलभा ........................ २३८६ | दशविधात्मस्वरूपविमर्शः .. ....... २३९८ प्रम!-नय पो५ विना म॥२॥५॥ हुम ...... २३८६ | पारमार्थिकाऽऽन्तरिकमोक्षमार्गाध्यानयोगस्य द्वादशाङ्गीसारता ...................... २३८७ ऽभिमुखदशाप्रारम्भः ..................... २३९९ मात्मविया२६॥ ३गवीमे ...................... २३८७ | नि४२१३५ निस्व३५ तुल्य अनुभवी ......... २३९९ २३९३ ..... m mr २३९५ .२३८३ x

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