Book Title: Dhyanashatakam Part 1
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 49
________________ ४६ dadadadadazaza ग्रन्थ के कर्ता - जहाँ तक प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता का प्रश्न है, परम्परागत दृष्टि से उसके कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण माने जाते । इतना ही नहीं इसके सम्बन्ध में एक प्रमाण यह दिया जाता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के कुछ संस्करण में इसकी १०६वीं गाथा में ग्रन्थ की गाथा संख्या का निर्देश करते हुए उसके कर्ता के रूप में 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' का स्पष्ट उल्लेख हुआ है । पंचुत्तरेण गाहा सण झाणस्स जं समक्खायं । जिनभद्दखमासणेहिं कम्मविसोहीकरणं जइणो ।। प्रस्तुत गाथा में एक सामासिक पद 'कम्मविसोहीकरणं' है । किन्तु जहाँ तक मेरा ज्ञान है प्रस्तुत गाथा में 'कम्मविसोहीकरणं' यह सामासिक पद जिनभद्रगणि का विशेषण तो नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँ इस सामासिक पद में प्रथमा या द्वितीया विभक्ति है जबकि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण में तृतीया बहुवचन या पंचमी विभक्ति है । अतः 'कम्मविसोहीकरणं' यह या तो जिनभद्रगणिकृत किसी अन्य ग्रन्थ का नाम हो सकता है या फिर प्रस्तुत 'झाणज्झयणं' को ही कर्मविशुद्धिकारक कहा गया है । हमारी दृष्टि में यही विकल्प समुचित है, क्योंकि ध्यान तप का ही एक प्रकार है और जैन दर्शन में तप को कर्म- विशुद्धि या कर्मनिर्जरा का हेतु माना जाता है । पुनः ध्यान में शुक्लध्यान ही ऐसी अवस्था है जिसके चतुर्थ चरण में सर्व कर्मो का क्षय हो जाता है । अतः 'कम्मविसोहीकरणं' इस 'झाणज्झयणं' नामक ग्रन्थ का ही विशेषण है । अतः इस समस्त पद को इस रूप में लेना चाहिए- 'कम्मविसोहीकरणं झाणज्झयणं' । मेरी दृष्टि में इस गाथा का अन्वय भी इस रूप में करना होगा । ध्यानशतकम् जिनभखमासमणेहिं गाहा पंचुत्तरेण सएण जइणो । कम्मविसोहीकरणं झाणज्झयणं समक्खायं ।। इस गाथा के आधार पर 'विनयभक्ति सुन्दर चरण ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित संस्करण में 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' को इसका कर्ता बताया गया है । Jain Education International 2010_02 किन्तु यहाँ एक समस्या यह है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के कुछ प्रकाशित संस्करणों में एवं हरिभद्र की आवश्यकवृत्ति में मात्र १०५ गाथाएँ ही मिलती हैं । उसमें १०६वीं गाथा नहीं है । इस आधार पर पण्डित बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने ध्यानशतक की अपनी भूमिका में यह शंका प्रस्तुत की है कि ध्यानशतक के कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण नहीं हैं । यदि हम पंडित जी की इस बात को स्वीकार करके यह मान भी लें कि १०६वीं गाथा मूलग्रन्थकार की न होकर के बाद में किसी के द्वारा जोडी गई है तो भी इस आधा पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण नहीं है, क्योंकि स्वयं पंडित बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने अपनी भूमिका में ही इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अपनी कृतियों यथा- विशेषावश्यकभाष्य, जीतकल्पभाष्य आदि में भी लेखक के रूप में अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है । किन्तु कर्ता के नाम के अनुल्लेख से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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