Book Title: Dhyanashatakam Part 1
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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१२९
योगनिरोधस्वरूपम् aasardarnatantaraamakannadatarnatantnastaranatakartatatatatate
सव्ववइजोगरोहं संखाईएहिं कुणइ समएहिं । तत्तो य सुहुमपणगस्स पढमसमओववनस्स ।।४।। जो किर जहण्णजोओ तदसंखेज्जगुणहीणमेक्केक्के । समए निरुंभमाणो देहतिभागं च मुंचंतो ।।५।। रुंभइ स कायजोगं संखाईएहिं चेव समएहिं । तो कयजोगनिरोहो सेलेसीभावयामेइ ।।६।। सेलेसो किर मेरू सेलेसी होइ जा तहाऽचलया । होउं च असेलेसो सेलेसी होइ थिरयाए ।।७।।
अहवा सेलु व्व इसी सेलेसी होइ सो उ थिरयाए । सेव अलेसी होई सेलेसीहो अलोवाओ ।।८।। सीलं व समाहाणं निच्छयओ सव्वसंवरो सो य । तस्सेसो सीलेसो सीलेसी होइ तयवत्था ।।९।। हस्सक्खराइं मज्झेण जेण कालेण पंच भण्णंति । अच्छइ सेलेसिगओ तत्तियमेत्तं तओ कालं ।।१०।। तणुरोहारंभाओ झायइ सुहुमकिरियाणियहि सो । वोच्छिन्नकिरियमप्पडिवाई सेलेसिकालंमि ।।११।। [विशेषा. ३०५९-३०६९] कते पुव्वपयोगेणं, चउत्थं समुच्छिन्नकिरियमप्पडिवादि झाणं णाणाठाणोदयं जथा तथा झायति, अहवा कुलालचक्केण दिटुंतो, जथा दंडपुरिसपयत्तविरामवियोगेण कुलालचक्कं भमति तथा सयोगि बलिणा पुव्वारद्धे सुक्कज्झाणे अजोगिकेवलीभावेण सुक्कज्झायी भवति ।
-आवश्यकचूर्णी ।। RA सेलीसीति प्राकृतनामाधिकृत्य व्युत्पत्तिमाह-'अहवा सेलोव्व इसी' गाहा, व्याख्या-सेल इव इसी
महर्षिः शैलेशीति भवति, ननु शैलेशी तस्य महर्षेः काचिद्विशिष्टाऽवस्थैवोच्यते, कथं शैलेशीप्रतिपत्ता मुनिरप्येवं व्यपदिश्यत ? इत्याह - सोऽप्येवं व्यपदेश्यो भवति स्थिरतया हेतुभूतया, स हि महर्षिस्तस्यामवस्थायां शैलवत् स्थिरो भवतीति शैलेशीत्युच्यते, एनमेव प्राकृतशब्दमधिकृत्य व्युत्पत्त्यन्तरमाह-सो वेति वाशब्द: पक्षान्तरद्योतकः, स शैलेशीप्रतिपत्ता मुनि: अलेसी होई त्ति तस्यामवस्थायामलेश्यः-समस्तलेश्याविकलो भवतीतिकृत्वा, अलेशीतिपदसम्बन्धिनोऽकारस्य लोपं कृत्वा सेलेसीति प्राकृतशब्देन सेलेसी प्रतिपत्ताभिधीयत इति गाथार्थः ।। - आवश्यकटिप्पनके ।।
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