Book Title: Dhyanashatakam Part 1
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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ध्यानशतकम्, RAAT.
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धव. पु. १३, पृ. गाथांक
पाठ
ध्या. श. गा.
पाठ
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१८
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चलंतयं जया ण ज्झाणावरोहिणी खविय तो जत्थ झाणेसु णिच्चल तहा पयइयव्वं णाणुपेहाओ सव्वमावासयाई इ दव्वालंबणो वेरग्गजणियाओ मणोवारणं ज्झायइ णिच्चल संकाइसल्लरहियो पसमत्येयादिगुणगणोवईयो पोराणदि णिज्जरा णिब्भवो -णमणग्धं ज्झाएज्जो तत्थ मइदुब्बलेण य तविज्जाइरियविरहदो णाणावरणादिएणं य सरि-सुठुज्जाणबुज्झेज्जो -मवितत्थं तहाविहं अणुवगय -मोहा ण अण्णहा
चलं तयं जिया ण झाणोवरोहिणी समिय जो [तो] जत्थ झाणे सुणिच्चल तहा [प] यइयव्वं णाणुचिंताओ सद्धम्मावस्सयाई इ दढदव्वालंवणो वेरग्गनियताओ मणोधारणं झाइ सुनिच्चल संकाइदोसरहिओ पसमत्थेज्जादिगुणगणोवेओ पोराणविणिज्जरं णिब्भओ -णमह [णग्धं झाइज्जा तत्थ य मइदोब्बलेणं तब्विहायरियविरहओ णाणावरणोदएणं य सइ सुठु जं न बुज्झेज्जा -मवितहं तहावि तं अणुवकय -मोहा य णण्णहा
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१. ध्या. श. में यहां 'जो' पद के असम्बद्ध होने से कोष्ठक में उसके स्थान में 'तो' पद की सम्भावना प्रगट की गई है । पर घवला __ के निर्देशानुसार वह मूल में ही पाठ रहा है । २. यहां कोष्ठक में जो [प] पाठ की सम्भावना प्रगट की गई है वह भी घवला के उक्त पाठ से सिद्ध है । ३. गा. ३० की टीका में 'जनितः' यह पाठान्तर भी प्रगट किया गया है । ४. यहां अर्थ की संगति बैठाने के लिए जो 'ह' के स्थान में 'ण' की कल्पना की गई है वह धवला के इस पाठ से सुसंगत है।
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