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हमारे कुछ आर्य समाजी भूताओं ने तथा कई अन्य अजेन
विद्वानों ने तो अपने पूर्ण गणितश होने का यहां तक परिचय दिया: है कि देश शंख से आगे गिनती का होना ही असम्मत्र बतला बैठे है
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इस लिए पूर्ण विद्वान सर्व विद्यानिधाम सर्वक्ष तुल्य महाशयां नम्रता पूर्वक निवेदन है कि वे गम्भीर दृष्टि से अपने हृदय में विचार, कि क्या गणना को भी कोई हद हो सकती है ? इस प्रकार विचार दृष्टि से काम लेने पर भले प्रकार ज्ञात होगा कि गणना की कोई हद या सीमा नहीं होसकती तो भी हम सँसारी मनुष्यों को अपनी “आवश्यक्तानुकूल कुछ को तक गणना नियत कट लेनी पड़ती है। अपनी २ आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर हरदेश के विद्वाना, अपनी अपनी बुद्धि वा विचारानुसार अनेक प्रकार से गणना कुछ न कुछ स्थानादि मानकर उनकी कल्पित संज्ञा नियत करली 'और ं अपने २ श्रावश्यकीय सर्व कार्य उसो से निकाल लेते उदाहरण के लिए कुछ विद्वानों की कल्पित इकाई दहाई आदि नीचे लिखी जाती है:--
१) अव फारसी की इकाई 'ददाई-इकाई, दहाई कडा, हजार, दशहजार, सौहज़ार । केवल ६ अक प्रमाण --, ( २ ) लीलावती की इकाई दहाई-एक, दश, रात, सहस् अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, अब्ज, खर्व, निखर्व महा श्रायुत, शंकु, जलधि, अत्यंज, मध्य, परार्धं । १८ अक प्रमाण ___ ( ३ ) उर्दू हिन्दी भाषा को इकाई दहाई—इकाई, दहाई लक्ष, दश लक्ष, कोटि, दश-कोटि,
कड़ा,
दश नील, पद्म, दर्श...
। ३१९ अक ममारी