Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 82
________________ ( ७० ) . काश और क्रम को धारण किया न्याय दर्शन जिसे ब्राहाण ऋषि गौतम ने बनाया है अध्यात्म विद्या के रूप में असम्भव हो जातो । यदि जैन और बौद्ध अनुमान चौथी शताब्दि से न्याय का यथार्थ और सत्याकृति में अध्ययन न करते, जिस समय, मैं जैनियों के न्यायावतार, परीक्षा मुख, न्यायप्रदीपिका, आदि कुछ न्याय ग्रंथों और अनुवाद करें रहा था उस समय यथार्थता, सूक्ष्मता, सुनिश्चितता, का सम्पादन जैनियों की विचार पद्धति ओर संक्षिप्तता को देखकर मुझे आश्चर्य हुआ था और मैंने धन्यवाद सहित इस बात को धारण (नोट) किया है कि किस प्रकार से प्राचीन न्यायपद्धति ने जैन नैयायिकों के द्वारा क्रमशः उन्नति लाभ कर वर्तमान रूप धारण किया है, इत्यादि । : (३) फादर अवे० जे० ए० इसाई साहब मैसूर देश में प्रसिद्ध पादरी थे आपने फांसीसी भाषा में भारत के लोगोंका हाल लिखा है "लार्ड बिलयम बेटिङ्क (Lord william Bentinck ) जो हिन्दुस्तान के गवर्नर जनरल (Governor General ) रह चुके हैं उन्होंने भी उस पुस्तक की बहुत प्रशंशा लिखी है इस पुस्तक की भूमिका के अन्त में सम्पादक ने इस मकार लिखा है: Fr. Abbe J. A. Dubois, Christian missionary states in the “Description of the Character, manners and customs, of the people of India. and of their institution, religions and civil” as : following:—. “I have subjoined to the whole an appendix containing a brief account of the Jains, of their doctrines the principal points of their religion and their peculiar customs. #

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