________________
.
.
बतों का स्वरूप
न
.. मुनि के महाव्रत सकल व्रत होते हैं और श्रावक के १२ व्रत होते हैं यांनी:--
५ अणुव्रत (अहिंसा, सत्य, परस्त्री त्याग, चोरी त्याग परिग्रहं प्रमाण)
३ गुण व्रत (दिग व्रत, देश प्रत, अनर्थ दंड त्याग) .. ४ शिक्षा व्रत (सामायक मोषधोपवास, अतिथि संविमांग यानी वैयाव्रत, भोगोपभोग परिमाण) .. इनका पूरा २ वर्णन जैन शास्त्रों से जानना । :: श्री. गोमहसार कर्म कांड छटे अधिकार में ८०२ वें श्लोक में कहा है। ..., .
अर्हत्सिद्ध चैत्यतपः श्रुतगुरु धर्म संघ प्रत्यनाकः । - बन्नाति दर्शन मोह मनंत सांसारि को येन ॥ .. अर्थ- जो जीव अरहंत सिद्ध प्रतिमा, तपश्चरण निर्दोष .शास्त्र निग्रेथ गुरु वीत राग प्रणीत धर्म और मुनि श्रादि का समूहरूप संघ-इनसे प्रतिकूल हो अर्थात इनके स्वरूप से विपरीति का ग्रहण कर वह दर्शन मोह को बांधता है कि जिसके उदय से वह अनन्त संसार में भटकता है