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३५-स्त्री शिक्षा ! . ता०-१७-११-२५-को जैन महिलाश्रम संगली में मनि श्री शान्तिसागरजी महाराज ने धर्मोपदेश इस प्रकार दिया था । "स्त्रियों को शिक्षा अवश्य देनी चाहिये" क्योंकि उन्हीं की शिक्षापर समाज की भवितव्यता का आधार है। प्राचीन काल में जैन समाजकी कितनी महिलाओंन विदुषीपने को धारण कर अपनी विद्वत्ता के जोर से जैन धर्म का डसा वजा दिव्य ध्वजायें फहराई थीं। देखिये ? जैन कन्या "चेलना देवी ने जैन धर्म के तत्वों का रहस्य समझाकर अपने पति वौद्ध धर्मी "राजा श्रेणिका को जैन धर्म का दासानुदास बना भविष्य काल में प्रथम तीर्थकर के बंध होने का महत् कार्य करवाया था । पुनः देखिये तीर्थकरों को जन्म देने वाली "वानादेवी और त्रिसलादेवी आदि स्त्रियों की देवों ने भाकर सेवा की है। स्त्रियों का पद श्रेष्ठ है । समस्त सन्सारकी जन्म दात्री "महिलाओ" को लौतिक और धार्मिक दोनों प्रकारकी शिक्षा देना अत्यन्त आवश्यक है । इत्यादिः २.................... (जैन महिलादर्श अङ्क १० माघ सुदी ३ धार २४५२ से उद्धृत) ____ नोट-यह वर्तमान समय में निग्रंय दिगम्बर गुरु हैं समाज को ध्यान पूर्वक इनके उपदेश पर कन्या को और निषों को विद्याम्यास धर्म शास्त्र अवश्य पढाना चाहिये । ताकि उनकी प्रास्ता का भी पूर्ण रूप से कल्याण हो और कन्या पाठशालाएँ भी जगह २ खुलने की आवश्यकता है । . .... . . मार्थीद्वारकाप्रसाद जैन हाथरस ।
३६-अरहंत भगवान के ४६ मूल गुण । ३४ अतिशय, प्रतिहार्य, ४ अनन्त चतुष्टय%४६. यानी।
जन्म के (१०)--१ अत्यन्त दर शरीर, २ भति सुगंधमय