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श्ररध्व
संवेग
समाधान ग्रन्थ चर्चा नं० १७ में इस प्रकार किया तिलक नाम काव्य विषै पुरुष के चार बाह्य लक्षण चार ही. सम्यक्त के कहे हैं- यानी स्त्रीजन के संभोग बेटी के उपनाचने करि * विपती विषै धीर्य भाव सों कार्य के निरवाह से इन चार चिन्ह करि पुरुपकी यतीन्द्रय पुरुष शक्ति जानी जाने है तैसे ही शान्त भाव भाव * दया भाव * आस्तिक्य भाव * चारों श्रव्यभिचारी भावनसों सम्यक्त रत्न जाना जावैहै १ --- क्रोधादि रहित सम भाव को शान्त भाव कहिये । २ - कोमलता युक्त परिणाम को दया माय कहिये | ३ - धर्म, धर्म के फल विषे मीति होय तथा देह भोगस उदासीनता होय तिसे संवेगं भाव कहिये ।
इन
यानी
8 – आप्तागम पदार्थ विषै नास्ति बुद्धि न होय जिसे श्रास्तिक भाव कहिये ।
यह चारों भाव कभी विभचरें नहीं । विकार रूप न 'होवें यह सम्यकदृष्टी का बाह्य लक्षण है ।
नोट --- जिसने सम्यक्त ग्रहण कर लिया उसके हाथ में चिन्तामणि है । धनमें कामधेनु जिसके घरमें कल्पवृक्ष है उसके अन्य क्या प्रार्थना की श्रावश्यकता है। कल्पवृक्ष कामधेनु चिंतामणि तो कहने मात्र है । सम्यक्त ही कल्पवृक्ष कामधेनुं चिंतामणि है - यह जानना (. परमात्म प्रकाश श्लोक १४१ से उद्धृत )
है " यश कहे हैं ।
करि ! वेटा
३३ – उपदेश !
१ - सन्सार में अनादि से प्रचलित मिथ्यासतों के जाल में बचने के लिये पहले अपने जेन शास्त्रों को पढ़ो और उनका मनन करो।..