Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ ( १२६ ) मधु मांस और मद्य के सर्वथा त्याग और हिंसा झंट चोरी कुशील और परिग्रह का एक देश त्याग करना । ३-मिथ्यात्द, सप्तव्यसम, अन्याय, अभक्ष्यका साया' त्याग कर पंच अणुव्रतोंके पालनमें जैनियोंको तत्पर रहकर सफल करना चाहिय नियों के चिन्ह । . १-जिन दर्शन करना, जल छानकर पीना और राति भोजन त्याग करना। __ . २६-पढने योग्य शास्त्र।। वीतराग सर्वज्ञ कथित जो । तत्व अतत्व प्रकाशक हो।, रहित विरोध पूर्वापर हो । मिय्यामत का नाशक हो ॥१॥ नहीं उलंध सके परवादी धर्म अहिंता भासक हो । आत्मोन्नति का मार्ग विशयकशान हमारा शासन हो॥२॥ ३०. उद्देश। हर एक के साथ भाईयाना वाव करते हुए मनुष्य मात्रकी सेवा कर जैन धर्म का प्रसार करना । ___ नोट--"जिना सन्सत में जीतने वाले को कहते हैं यानी जिसने क्रोधादि १८ दोप जीत लिये वह जिनेन्द्र सरज्ञ हितोपदेशक, का कथित धमापदेश, उसको "जैन धर्म कहते है। ३१-नीति वाक्य । . Be-just & fear not. "मुनसिफ हो डरो मत। Be good & do good. "नकी करो मेकरहो। Plain liring & high thinking. "सरल प्राचार उच्च विचार" • Love your King & do rour duty: • अपने राजा बादशाह से महोब्बत करो और अपना फर्ज अदा करो"। ३२--कोई प्रश्न करे कि सम्यग्दृष्टी श्रयवा सम्यक्ती की क्या पहिचान ! उसका समाधान पं० सुदरदासजी ने चर्क

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151