Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 139
________________ (..१२७ ) ". बहुवाजे के फल । अफीम का डोड़ा, गीलो लाल मिरच, तिजारा, पोस्त, धरा सत्यानासी, एरंडखरबूजा, पपीतो, इलायची हरी:२०-जैन धर्म उद्यात करने के मुख्य उपाय । दान चार प्रकार में, शास्त्र दान प्रधान । . ___ श्रष्ट कर्म को नष्ट कर. पावे मोक्ष निदान । . : धर्म करत संसारं सुख, धर्म करत निर्वान । . . "धर्म पंथ साधे 'विना, नर तिर्यंच समान ।। : . .: (अ) स्थानीय और भारतीय जैन अजैन समाजों में जैन धर्म की प्राचीनता प्रगट कर आत्म सुख का सच्चा । उपाय बताना । " . .. ... (ब) सर्व प्रकार के ग्रन्थों का संग्रह कर स्थानीय व ग्रामादि समाज में स्वाध्याय प्रचार करना। तथा भारतीय जैन समाज में षटकर्म रूसी नियमावली प्रकाशित कर स्वाध्याय व धर्म प्रचारार्थ विनामूल्य वितरण करना। - (स ) जैन समाजकी अशिक्षित स्त्रियों में विद्या प्रचारार्य हिंदी पुस्तकें विना मूल्य वॉट कर आत्म हित पर लाना। (उ) अमूल्य जैन ग्रन्य व पुस्तकें प्रकाश कर विना मूल्य 'चांटना और मासिक पत्र को भारत वर्षीय जैन समाज को बिना मूल्य भेजना। . . . . . . (ई) वालकों के धर्म शिक्षार्थ पाठशालायें खुलवाना। २२-दो घडी ( ४८ मिनट ) में ३७७३ स्वांस होने हैं। २३-विचारने योग्य प्रश्न -। . . (अ) इस प्रश्न मर रोज-विचार करो कि मैं कौन हूं ? A . . .

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