Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 138
________________ (. १२६ ) कल नाना प्रकार के रोग व प्लंगादि का अक्सर चक पिरा" करता है। पौरुष इंन्द्रियां थकने पर यथावत नहीं हो सकता। "शुरु में धर्म साधन करते हुए नाना प्रकार के भावों का.यह जीव ज्ञायक हो जाता है। तो अंत समय समाधि मरणं भले प्रकार कर सकता है। समाधि मरण :इस जीव ने कभी नहीं किया। इस लिए भूमण कर रहा है। एक दफे भी समाधि मरण हो जावे. तो.मोक्ष पथ पर लग जावे हमारे ऊपर किसी प्रकार का कष्ट दुख, बैर, इत्यादि से उपसर्ग हो, सब धैर्यता से सहो, प्रभू को स्म करो ईश्वर के सहस्त्र नाम है। शिव, विष्णु ब्रह्मा सिद्ध इत्यादि जो तीन लोक के शिखर पर विराजते है। लोक मांगे लगा देने से शिवलोक विष्णु. लोक, ब्रह्म लोक, सिद्ध लोक यह मोक्ष के नाम हो जाते हैं। अन्य स्थान व जीव कोई नहीं जब धैर्यता से कष्ठ, दुख और इत्यादि.सहोगे; दो :अंत में कोई ऐसी बात पैदा होगी जो हमारे अमूल्य होगी, मेरा यह कई बार का सजावा किया हुआ है। कोई चुगली करे या गालियां भी देखें तो धर्म मधान पूर्वक सहो शांत रहो। उस हो की आत्मा, जिन्या खराब होवेगी उसःही के सर पर पाप (गुनाह) सवार होवेगा। प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जो कोई अपना मुह दूसरे की तरफ टेढ़ा करेगा, वो दर्पण ले, उस ही का टेढ़ा दीखेगा। और तोकापवाद होगा और उसका दुःख फल वही भोगेगा। शांत धैर्य पूर्वक, सुनने घाले को कम मिजरा होगी ।:शांतता और गुण बढ़ेगे, लोक प्रशंसनीय होगा यदि शांतता नं धारण करोगे तो दोनों समान : हो जावोगे। किसी कवि ने कहा है. कि ... दुख शोक- जब जो आपड़े, सो धैर्य पर्वकं सर्व सहो। . . होगी सफलता क्यों नहीं, कर्तव्य "पथ पर इद रखो। वरूप.1.::. :: . . . गदे को. अपेक्षा...बीज ज्यादा.. और एकदम गिरपड़े और बीज के बीच में पुट (छिलका) म होवै और एक घमें रहते हो सो वहवीजा जान लेना--(सूखे फलों में दोष नहीं): :: ::

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