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( २) (व ) नर देह बड़ी कठिनता से प्राप्त होती है । इसे विषय भोगों में व्यर्थ मत खोयो। परोपकार एवं आत्म कल्याण में लगाओ। ... ... ., : .:. . . . . . . .::
(स ) सर्व जीवों से मैत्री भाव रक्खो। (उ.) मैं ज्ञानमयी चैतन्य हूं। (ई ) देह मेरी नहीं, जड़ है।
(क) पर वस्तु (मात पिता स्त्री भ्राता. पुत्र पुनी इत्यादि कुटुम्बी जन, द्रव्य, महल, मकान, जमीन, शरीर जिसमें अपना चैतन्य रम रह्या है, इत्यादि में प्रापा मत मानों । मानना दुखदाई है...... . : ..:. . . . ( ज शुद्ध खान पान करना । सादा आहार, वस्त्र, चाल चलन ठीक रखना. व कुसङ्गतियों से बचना मनुष्य का कर्तव्य है.. ...................... ...
(इ) जीव मात्रको रक्षा करो ............. ... २४प्रत्येक ग्राम नगर में यह .. अमृत रूपी धर्मोपदेश जैन अजैन माइयों की सभा कर प्रति मास सुनाना चाहिये ।
२५-यह पुस्तक प्रत्येक जैन मंदिर, : उपदेशक, सभाओं धर्म:प्रेमी, सरस्वती ( जिनवाणी.) भंडार में रखना चाहिये ।
२६. अहिंसा : पर्मो धर्मः । यतो धर्मः ततो जयः ।। धर्मात्माओं के बिना, धर्मः, अन्यत्र कहीं नहीं : पाया.. जा. सकता है
.........: : - २७ गृहस्थ के कर्तव्य ।। ...."
१-सर्वक्ष वीतराग देव की पूजा निग्रंथ गुरुं की उपासना स्वाध्यायः समय । तप और दान नित्य प्रति करना। .