Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 146
________________ ३७-दीर्घ चेतावनी । युद्धी वैभय यदागे के लिए राग द्वेष कोधादि द्वारा श्रयाय विगत पाचरण हमें न करना चाहिए । इम मिन जिन आधीन है उनका न्याय पूर्वक फर्मावरदारी में रहे । अयथा जो जो हमारे . आधीन है उनपर दयाभाव रखना उचित है। ३८अ हमारा जीस प्रार्थना व पाशीरवादई श्रिीमान महोदय महामान्य सम्राट पंचम जान, गृटिश सरकारका समस्त पढ्यो परं अटल राज्य दो, कि जिन कराड़ा में दम पूर्ण स्वतंत्रता पूर्वक धर्म साधन व धर्मोन्नति करते हैं । यशोमान महोदय मान्यवर, हिज पलमो गवर्नर जनरल हिंद, दिपलेसी गवरनर, संयुक्त मान United Province और भीमान महोदय कलक्टर साहब बहादुर जिले *अलीगढ़, न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट साहव व तहसीलदारजी साहब *हायरस को अनेक कोटिशः हार्दिक धन्यवाद है कि वे हम दिगम्बर जैनियों को हर तरह से हिफाजत देख रेख करते है। तथा धर्म साधन में इयं पर्वक मदद देते हैं। नोट-जो पता जिस स्थान का हो, यह वहां के स्थानों को पढ़ें। स-श्रय में निम कुछ मङ्गल भजन करके अपने स्थान पर प्रस्थान होता है। जो कुछ भी प्रमाद व अशानता बस, मुझ गलतियां व अशुद्धी दुई ही, उनके लिए जिनवाणी से क्षमा प्रार्थी हूं । तया जो २ पण्डित चतुर विद्वजन हो, मुभ मंदबुद्धि पर. क्षमा भाव कर, सुधार करेंगे। मैंने तो, कंवल, भक्ति व धर्म साधन बस यह धर्मोपदेश लिखा है यधिप में असमर्थ है जैसे चालक, चंद्रमा को पकडना चाहे। ३९-मेरी भावना व निवेदन (नमः सिद्धेभ्य) . सब प्राणी मात्र, शक्ति प्रमाण, यथा धर्म शास्त्रोक्त रीति पर धारण करो। ज्ञानी वनो ज्ञान वान होने का निमित करना. मनुष्य पर्याय को ही है इसलिये कोई परुप व स्त्री स्वाध्याय

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