Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 124
________________ ( • १९२ ) पारमार्थिक भी जरूर सुधरेगा उन्हीं का जन्म धीर द्रव्य सफल है । परभव में द्रव्य तेजाने का एक यह 'दान' सुगम उपाय है । हमको न्याय पूर्वक द्रव्य कमाना और खर्च करना चाहिए । लक्ष्मी रूपी द्रव्ये में वीराग होने से तिर्गच गति का बंध पड़ना संभव है । आपने उदाहरण भी बहुत से सुने होंगे कि " फलाने के पास बहुत द्रव्य था मरकर सर्प हुआ" । यदि आप द्रव्य ही साथ में रखना चाहते हैं तो धर्म में लगाइए। : निदान नहीं करना यानी मेरा फलाना कार्य सिद्ध होतो यह करें ऐसी कल्पना नहीं करनी । **** हर शहर में भाइयों को अभयदान का निर्मित बनाना चाहिए । यदपि साधारण तौर पर उपर्युक्त चार दान हैं परंतु श्री आदि पुराणजी पर्व ३७ में और रूप में चार दान इस प्रकार कहे हैं सोई कोई विरोध न करना करुणादान, सीताजी के किमिच्छादान का कथन समाधि मरण पाठ से भली भांति जाना जा सक्ता: है ! - दयादान, पात्रदान, समदान, अन्वयदान | दयादान - दया संहित जीवनि के समूह विषे अनुग्रह करना, 'मन वचन काय की शुद्धता करि सकल का उपकार करना, काहु के भय न उपजावना, दुर्पित भूषितं जोवनि कूं पोषना इसे दयादत्ति भी कहते हैं। (कंवा दान भी यही है) पात्रदान --- महा तपोधन महामुनि की अरचा करनी पडगाहनांदि नवधाभक्तिं करि विनि क्रू आहारादिक देने अर्जिक "

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