Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 135
________________ (१३) आज श्री रामचन्द्रजी आर रावण की लड़ाई को, ११ लाख ८७ हजार वर्ष व्यतीत हुए हैं। . रतत्रय(सम्यग्दर्शन जान चारित्र) देव गति . : . मनुष्य गति- itamsannog तिर्यगति . .. नरक गति इस सांतिये से यह मतलब है कि धर्म साधन करते हुए रत्नत्रय द्वारा मोन ग्रहण होता है उसी को नित्य यादगारी में पजन के समय सातिया काढ़ा जाता है-चार गतियों में यह जीव किस तरह भूमण करता है सो जैन शालों से जानना। १६-सम्पूर्ण तत्वों को जानने वाली तया तीनों लोक के ति. लक के समान अनंत श्री को प्राप्त होने वाले श्री सन्मति (महावीर या वर्द्धमान ) जिनेंद्र को मैं यंदना करता है। जो कि उज्ज्वल उपदेश के देने वाले हैं, और. मोह रूप तन्द्रः - के नए करने वाले हैं। भावार्थ श्री दो प्रकार की होती है। पर अंतरङ्ग दूसरो वाह्य । अनंतवान अनंतदर्शन अनंतन मन वीर्य इस अनंत चतुष्टय रूप श्री को मतरतश्री कहते हैं और समवसरण :प्रष्ट *, प्रांविहार्य आदि वाह्य विभूति को पार श्री कहते हैं। यह श्री वोन लोक को वितक के समान हैं, क्यों

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