Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ भाजापती (२२ माम त एक पा १०० चाचा के गर) एक यात्र बिना नियतुप गावह परिचा नहीं पागा करती. टुम्बादि से ममत्व रहित रहनो-स्त्री पर्याय में प्रमिन की यही पूर्ण ना . है - उपचार में महाया कहिण, निश्वर में अणुव्रत हो है। पांच गुण स्थान हा है। यदुरि जो गृह में यमि करि, अणुन धारण कपि, शील संया मंगोल नमादि का रहने पाखानि के अपुरन है, सो मंत्तर में दोऊ ही होय।। ४-जो देशली में "त्री शिक्षा पर प्रस्ताव प्रा या मो प्रकाश करती हूं--- स्त्री-शिक्षा। . देहली में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासमा के २७ - सन १९२३ बीर सं०२४४५ के अधिवेशन में सभापति, भीमान सेट गवजी सखाराम दोशी (सोलापूर) के न्यारागन से उद्धनः। : . स्त्री शिक्षा के बावत सब किमी का मतभेद नहीं है परंतु 'त्रियोंको शिक्षा किस तरह की देनी चाहिए उसमें मतभेद रहना है। मेरी समझ में स्त्री को धर्मशास्त्र का अवश्य ज्ञान होना चाहिए। . पण्डिन आशाधरजो अपने सागार धर्मामृन में लिखते हैं कि घ्युत्पादयेत नराम् धर्म पनी प्रेम पर नगन् । ... साहि मुग्धा विगुदा या धर्मात भ्रशयेत तराम ॥ . अर्थ-अपनी पत्नी को धर्म में अच्छी तरह से व्यसन्न करना चाहिये । क्योंकि यदि यह धर्म से अनभित्र हो या प्रतिकूल होजाय तो अपने पति यादि को धर्म से भर कर इस लिए स्त्रियों को धार्मिक शिक्षा अवश्य देनी चाहिए और उसके साथ लौकिक शिक्षा धर्मसे आवरूद्ध हो,बद पदानी · देती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151