Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 110
________________ लेख विवरण १२-१३ वर्ष में दीया है उसका संक्षेप यहां प्रगट करती हूं त्रिी जी लिखते हैं। ....माज़ मुझे बडा हपं है मेरे हृदय में प्रानंद को लहरें उठ रही है मेरा भाग्योदय है कि सरस्वती सेवा का कार्य प्राप्त हुश्री है । जीव अनादि से भमण कर रहा है और चतुगति रूप संसार में जन्म मरण के दुःख उठो रहा है। इस को शीतलता देने वाली एक जिनवाणी सरस्वती ही हैं। हिनादिन मागं दिना कर स्व, पर, भेद विज्ञान, पैदा करती है । वस्तुं म्घहप को यथार्थ कहती है जैन धर्स का मूल ,जिमवाणी है । इस को रक्षा में जैन धर्म की रक्षा है जिनवाणों की उन्ननि से जैन धर्म की उन्नति है। यदि आज यह जिनवाणी न होती तो कोई नहीं जान सस्ता था कि जैन धर्म क्या है. संसार और मोक्ष क्या है ? श्राचार्यों ने कठिन परिश्रम से जिनगाणी के अथ निर्माण कीये और उन्हीं कहमको दर्शन और उपदेश नाज मिल रहा है लेकिन दुख की . वति हैं कि इस में से भी हमारी अंशानता और नापसीट के कारण अनेक स्थानों के सरस्वती भंडारों के बहु संध्या प्रथे जीर्ण शीर्ण होकर चूहों दीमकों के ग्रास बन कर नष्ट हो रहे । ..है। कितने ही ईसी भापात्रों में होने से हम से छूट रहे हैं । पया . यह सुनकर आप को दुख न होगा ? अवश्य होगा । भाइयो! "राध्याम दो, यदि जैन धर्म की रक्षा और उत्तति के मूल ये पथ हो, न रहेगे। तब यह: आप का धर्म कहां सुनाई पड़ेगा ? कहाँ "आप की अस्निाय और सहा श्रापमा पंथ रहेगा। इस लिए यदि आप सच्चे धमनिति के इच्छुक है.तो जहां..जहों अथ चालमारियों में बंद रहकर जीर्ण शीर्ण हो रहे हैं, उन गूथों को निकल चाइए, बाहर धूपं. दिलाइए, 'यदि जीर्ण होगए हो तो उनकी प्रसि दूसरी कराइए । कर्नाटको आदि दूसरी भापामों में हो तो. . हिंदी लिपि कराहए । इत्यादि बातों का प्रबंध करना आपका हमारा . पूर्ण कर्तव्य है"; समाप्त।... C. प्रिय.सजनो। मंत्री जी के बहुमूल्य बाक्ष्यों को सुन कर 'पि चहुत प्रसंशा हुए होगे । भोमान दानवीर राय वहादुर रमाईरस एचद जी सलापतितधाश्री लाभंगवानदास -

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