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. ( ४ ) बाही . त्रिय गुप्ति जानिये अव तप करूं वखानी ॥ अनशन ऊनोदर 'श्रत संख्या रंस परित्याग करें हैं। विविक्त शयनं काय क्लेश तप बाह्य छै उचरें हैं।। ११ । भायश्चित्त "विनय. वैयां व्रत स्वाध्याय व्युतसगै । ध्यान सहित छै अभ्यन्तर तप दाता सुख अप वर्ग।। . इन्द्रियादि मद नाशन भोजन त्यागे अनशन होई । अथवा न्यून भरै उर अपनो ऊनोदर तप सोई ॥ १२ ॥ . भोजन करूं नियम ऐसे सें ब्रा संख्या यह जानो। . दुग्धादिक रस के त्यागन को रस परित्याग.मुमानो।। शयन बैठना करै इकन्तं विविक्त शयनं योहै । देह नेह सज करें: विकट तपकायः क्लेश कहा है।।१३।। दोष दूर कू दंड य गुरु से प्रायश्चित मानो । गुण गुणियों का आदर करना सो तप विनय वखानो। पूज्य जनों की सेवा करना सो तप वैया व्रत है। • सामाभ्यास जु करें कराऐं सो स्वाध्याय मुतपहै ॥ १४॥ . वाह्य अभ्यन्तर संग तजे व्युत सर्ग सुतप बरनाई । चित्त करै एकान्त ध्यान. यह द्वादश तप मुख दाई ।। या प्रकार व्यवहार अराधन कहीं तनक मैं ' भाई । अप स्वरूप निश्चय का भाताहिमुनो मनलाई॥१५॥ गुणं अनंत को धाम निजातम सबसे भिन्न निराला । ऐसी द्रढ श्रद्धा है जाके सो सम्यक्ती आला ॥ अजर, अमर अविनाशी निरभय मुख आदिक गुणधामी! . जानें: यों निज प्रातम कू सी सम्यग्ज्ञानी नामी॥१६॥ : निज प्रातम के गुण समूह में होवै निश्चल, लीना [ . ताही को सम्यक चारित्री कहते हैं परवीना ।