Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 83
________________ ( ७१ ) Other writers possessing more information than I do, will hereafter instruct us more fully concerning this interesting sect of Hindus and particularly respecting their religious worship, which probably at one time was that of all Asia from Sibiria to Cap. Comorin, north to south, and from the caspian to the gulf of Kamaschatka, fromwest to East, &c. - श्रर्य-मैं' में एक ( Appendix ) लगाया है, जिस में मैंने जैनियों और उन के मन्तव्य, उन के धर्म की बड़ी २ बातें और विशेष रीति रिवाजों का वर्णन किया है। मुझ से अधिक ज्ञान वाले अन्य लेखक महाशय हिंदुओं की इस लाभदायक जाति और विशेष उनकी धर्म संबंधी पूजा के हाल से हमको आई दा अधिक परिचित करेंगे। यह पूजा किसी समय में श्रवश्व सारे एशिया (Asia ) में अर्थात उत्तर में साईविरिया (Sibiria ) से दक्षिण रास कुमारी ( Cape Comorin ) तक और पश्चिम में कैस्पियन झोल (Irake Caspian ) से लेकर पूर्व में कमस्कटका की खाड़ी ( Gulf of Kamaschatka ) तक फैली हुई थी, इत्यादि । क्या इस से अधिक स्पष्ट और विश्वास योग्य अन्य कोई साक्षी हो सकती है ? . . . ( 8 ) बाबू प्यारेलाल जी साहब जिमीदार, बरोठा । जिन्होंने अनेक उपयोगी पुस्तकें लिखी हैं उन्होंने "हिंदुस्तान कदीम " नाम की उर्दू की पुस्तक लिखी है जिस में आपने जैन धर्म : युरोप ( EUROPE ) में भी फैला हुआ था आदि अनेक लेख लिखे हैं पर कथन बढ़ने के भय से यहां सिर्फ 'अफ्रीका ' ( Africa) में भी जैन धर्म फैला हुआ था इस विषय में संक्षप लेख लिखा जाता है उसके पृ० ४२ पर इस मकार लिखा है: "जिस प्रकार युनान में हमने साबित किया कि, हिंदुस्तान के संमानवाचक (हमनाम) शहर और पर्वत विद्यामान हैं

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