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( ७३ ) 'में भाजनिया का मिश्र देश से सम्वन्ध लिखा है स्थानाभाव से उस लेख को यहां प्रकाशित नहीं किया गया सो पाठकगण 'क्षमा करें.. ... ... ... .. .
इम उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट तौर पर सिद्ध होता है कि जैन धर्म किसी समय में सारे 'एशिया, युरोप, अफ्रीका आदि देशों में भी फैला हुआ था- .
अब मैं आप लोगों के सामने कुंछ अजैन ग्रन्थों के प्रमाण रखता हूं सो रुपया ध्यान पूर्वक पक्षपात तजंकर- विचार करें
महाभारत के आदि पर्व अध्याय ३ श्लोक २६ में लिखा
साध्यामम्तावदि त्युक्त्वा प्रातिष्टतो. तङ्कुस्ते कुण्डलेगृही त्वा सोऽपश्यदथ पाथनग्नं क्षपणकमागच्छन्तमुहुर्मुहुदेश्य मानमदृश्य-मानंच ॥१२६॥ . ..भावार्थ, मैं यत्न से जाऊंगा ऐसा कह कर उत्क ने उन कुएंडलों को लेकर चल दिया उसने रास्ते में नग्न क्षपणका को प्राते हुए देखा-... . .. ... ::: .. अंधत ब्रह्म सिद्धि का. बनाने वाला क्षपणक को जन'साधु, लिखा है देखो.(कलक को छपी हुई पृ० १६७) . “क्षपणका जैन मार्ग सिद्धान्त प्रवर्त का इति ।
केचित,
अर्थः क्षपणक जैनमत के सिद्धांत को 'चलाने वाले कोई होते हैं -'.: ...
उपरोक्त कथन सिद्ध करता है कि महा भारत के समय जैन सिद्धांत को चलाने वाले क्षपणक- (जैनसाधू) मौजूद थे.... . मत्स्य पुराण के २४ वें अध्याय में लिखा है कि: गत्वाथ मोहपामास रजिपुत्र न बृहस्पतिः ।
जिनधर्म समास्थाय बेद वायं सवेदवित् ।