Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 64
________________ ( ५२ ) i को धारम्बार नमस्कार होवे। जहां २ पेले महान गुमश्रों में तप किया है वही स्थान.नग में तीर्थ होगए हैं। * अङ्गालो में भी गजल इस प्रकार है: “LIVES OF GREAT MEN ALL RIMIND US, WE CAN MAKE OUR LIVES SOBIJE, AND DEPARTING, LEAVIS BEIND US, Foor-PRINTS CN THE SANDS OF TIBIE. रखता . चलो देखो दिगम्बर मुनि महानामह ातम में । खडे निश्चल है वे उन में तपस्या हो तो ऐसी हो । गरीपम काल कैसा है कुरंग बन में भये कायर । शिखर पर हैं खडे निर्भय तपस्या हो तो ऐसी हो । ऋतू पावस अती गरज पडे है मेघ की धारा । वृक्ष तल पद्म आसन है तपस्या हो तो ऐसी हो ॥ यह देखो शीत की सरदी गले हैं मद भी वानर के। लगा है ध्यान सरतापर तपस्या हो तो ऐसी हो । दहाडे सिंह जिस वन में लगा ध्यान श्रातम में । चढी है वेलि जिन तन में तपस्या हो तो ऐसी हो ॥ शुद्ध उपयोग हुताशन में कर्मको जारते निशदिन । शत्रु और मित्र से समता तपस्या हो तो ऐसी हो ।। सुगुरू की है यही. पहचान वखानी जैन शासन में। झुकाकर सिर का सिजदा तपस्या हो तो ऐसी हो ।। अव कुछ अजैन विद्वानों की भी सम्मतियां यहां पर प्रकट करते है जिसकों लाला केसरीमल मोतीलाल राँका व्यावर, . वाले ने फरवरी १९२३ में सँग्रह कर ट्रेक्ट द्वारा इस प्रकार प्रकाश दिया था। ..

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