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( २. मैं यपको कहां तक कहे. बड़े बड़े नामो श्राचार्यो नेन यथा मं.जो जैन मन खण्डन किया है वह [ऐसा किया है जिसे सुन खर हंसी आती है ।
अभेद्य किला है उस गोले नहीं प्रवेश
( ३ ) स्याद्वाद का यह (जैन धर्म) के अन्दर वादी प्रतिवादियों के माया मय कर सकते ।
(४) सज्जनों एक दिन यह था कि जैन सम्प्रदाय के श्राचार्थे के हुंकार से दसों दिशाएं गूंज उठती थीं ।
(५) जैन मत तब से प्रचलित हुआ है जब से संसार में. सृष्टि का आरम्भ हुआ ।
(६) मुझे इस में किसी प्रकार का उम्र नहीं है कि जैन दर्शन वेदान्तादि दर्शनों से पूर्व का है।
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भारत गौरव के तिलक पुरुष शिरोमणी इतिहासज्ञ, माननीय पं० बाल गंगाधर तिलक १९०४ को बडे दा नगर में दिये
के ३० नवम्बर सन् हुए व्याख्यान से उद्धृत
कुछ वाक्य ।
(१) श्रीमान् महाराज गायकवाड ( बड़ोदरा नरेश ) ने पहले दिन कानफरेंस में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार 'अहिंसा परमोधर्म' इस उदार सिद्धान्त में ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छाप मारी है। पूर्व काल में यज्ञ के लिए असंख्य पशु हिंसा होती थी इस के प्रमाण मेघदूत काव्य श्रादि श्रनेक गाथों से मिलते हैं- - परंतु इस घोर हिंसा का प्राहारा धर्म से विदाई ले जाने का श्र ेय (पुण्य) जैन धर्म के हिस्से में है ।
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(२) ब्राह्मण धर्म को जैन धर्म हो ने श्रहिंसां धर्म बनाया
- ( ३ ) ब्राहाणा व हिंदू धर्म में जैन धर्म के हो प्रताप से मांस भक्षण. व मदिरा पान बंद हो गया ।
*भूत पर्व सम्पादक केसरी ।