Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 68
________________ ( ५% ) [ ४ } पेरिस · ( कांस की राजधानी ) के डाक्टर ए० गिरनाट अपने पत्र ता० ३-१२-१९११ में लिखा है कि I मनुष्यों की तरक्की के लिए जैन धर्म का चारित्र बहुत लाभकारी है यह धर्म बहुत हो असती, स्वतन्त्र, सादा, बहुत मूल्य चान तथा ब्राह्मणों के मतों स े भिन्न है राया यह बौद्ध के समान नास्तिक नहीं है | [ ५ 1 जर्मनी के डाक्ट' जोहनस हर्टल ता० १७-६-१९०८ के पत्र में कहते हैं कि . मैं अपने देश वासियों को दिखाऊंगा कि कैसे उत्तम नियम और उचे विचार जैन धर्म और जैन श्राचायों में है। जैन कत साहित्य, बौद्धों से बहुत बढ़कर है और ज्यॉ २ में नम धर्म और उसके साहित्य समझता हूं त्यों २ में उनको अधिक पसन्द करता हूं । .[ ६ 1 श्रन्यमतधारी मिस्टर कन्नुलाल जोधपुर की सम्मति(देखो The Theosophist माह दिसंबर सन ११०४ च जनवरी सन १९०५ ) जैन धर्म एक ऐसा प्राचीन धर्म है कि जिसको उत्पत्ति तथ · इतिहास का पता लगाना एक बहुत ही दुर्लभ बात है । इत्यादि [ ७ 1 मि० आवे जे० ए० डवाई की सम्मतिः (Discription of the character manners and 'customs of the people of India and of their insti tution and ciril. ) ".. . इस नाम की पुस्तक में जो सन १८१७ में लंडन में छपी हैं श्रापने बहुत बडे व्याख्यान में जैन धर्म को बहुत प्राचीन लिखा

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