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हैं। इस में जैनियों के चार वेद प्रयमानुयोग चरणानुयोग, करणासुंयोग, और दैव्यानुयोग, को श्रादिश्वर भगवान ने रचा ऐसा कहा है. और आदिश्वर को जैनियों में पहुँन प्राचीन और प्रमिद पुरुष जैनियों के २४ तीर्थकर में सव से पहले हुए है ऐसा कहा है।
" श्रीयुत वरदाकान्त मुख्योपाध्याय एम० ए० रंगला श्रीयुत नाथूराम प्रेमी द्वारा अनुवादित हिन्दी लेख से उद्धृत कुछ चाक्य ।
(१) जैन निरामिष भोजी (मांस त्यागो ) क्षत्रियों का धर्म है। . : . (२) नैन धर्म हिन्दु धर्म से सर्वथा खतंत्र है उसकी सांस या लैपान्तरं नहीं है मेक्समुलर का भी यह ही मत है। . ... (३) पार्श्वनाथ जी जैन धर्म के प्रादि प्रचारक नहीं थे परन्तु इसका प्रथम प्रचार रिपमदेवजी ने किया था इसकी पुष्ठी के प्रमाणों का प्रभाव नहीं है। . : .
(४)वौद्ध लोग महावीर जो कोनिगंन्यो अर्थात जैनियों का नायक मात्र कहते हैं स्यापक नहीं कहते। जर्मन डाक्टर जेकोबी का
भी यह ही.मत है। ... ___.(.५) जैन धर्म ज्ञान और भावको लिये हुए है और मोक्ष भी इसी पर निर्भर है। .
( १) रारा वासुदेव गोविंद आपटे वी०ए० इन्दौर निवासी के व्याख्यान से कुछ वाक्य उद्धृत । .
(१) प्राचीन काल में जैनियों ने उत्हष्ट पराक्रम वा राज्य भार का परिचालन किया है। . . . (२) जैन धर्म में अहिंसा का तत्व अत्यन्त श्रेष्ठ है (३) जैनधर्म
*आदिश्वर को जैनी रिपमदेवजी कहते हैं। : * प्राचीन काल में चक्रवर्ती, महामण्डलीक, मंडलीक आदि बड़े पदाधिकारी जैनधर्मों हुए हैं जैनियों के परम पूज्य २४ सों तीर्थकर भी सूर्यवंशी चन्द्रवंशी श्रादि क्षत्रिय कुलोत्पन्न चडेरराज्याधिकारी हुए जिसकी साक्षी जैम-अन्यों तथा किसी २ अजैन शास्त्रों व इतिहास प्राथों में भी मिलती है।