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निर्मल विकार रहित होते हैं जैसे तुरन्त जन्मे वालक के • भाव निर्मल होते हैं। वे नन मे शरीर रक्षा के लिये जिससे
धर्म साधन हो , आहार लेने.पाते हैं सो मी ३२ अंगराय टालकर नवधा भक्ति से भोजन लेत है वरना जंगलों में, नदियों के तटपर, पर्वतों की चोटीयों पर ध्यानाकह रहते हैं। बे महामुनि करुणा के सागर आप तिरने वाले दूसरों के तारने वाले होते हैं। उनकं भाव सर्वोत्कृष्ट उच्च होते है जैसे कूए का जल एक कांच के गिलास में भरकर देखिय तो गदलासा मालम होगा, यही अवस्था ठीक हम संसारियों की है और तप जप करके जब वह गिलास का जल विलकुल स्वच्छ यानी कुल कर्दम नीचे बैठ जाता है और जल नर्मल होजाता है सो हक वही अवस्था महा मुनियों की है । ऐसे निग्रेथ मुनि, सर्वोत्कृष्ट पूज्य हैं। नग्न अवस्या पर निम्न दृष्टान्त द्वारा विचार करिये।
एक समय सरमद नाम का मुसलमान फकीर देहली के । गली कूचों में ब्रहना । नङ्गा) मादर जाद होकर घूम रहा था । श्रीरङ्गजेब बादशाह ने देखा, तन पोशिश के लिए कपड़े भेजे, फकीर मजलून ( अपनी ही आत्मा में लीन निजानंद अवस्था में)
और वली था। कह कहा (खिल खिलाकर ) सा! कलम दवात कागजं पास था एक ख्वाई [ शेर (छंद)] लिखो और वादशाह
के खिलप्रत को यो ही वापिस कर दिया. रुवाई यह थी ! , आंकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद ।
मारा हम और अस्वाव परेशानी दाद ।। पोशानीद लवास हरकारा ऐवे दीद ।
वे एबा रा लववास. अयानी दाद ॥ ... ... अर्य-जिंस ने तुमको 'यादशाही ताज'दीया 'उसी ने
हम को परेशानी का सामान दीया। जिस किसी में कोई ऐव पाया 'उस को लिबास पहिनाया श्रीट जिन में ऐब न पाए उनको नंगेपन का लिवास दिया।
कर देहली से
जेब बादशहा ) मादर जाद