________________
(२.) श्री अर्थप्रकाशिका तया श्री गोमट्टसारादि में संव.सुछ मौजूद है। यदि तब भी समझ में न आये तो मुझ से. पत्र व्यवहार को। तथा किसी प्रकार को शुग उपरोक्त लग्न में हो तो वह भी प्रस्ट करें। किसी जैन समाचार पत्र द्वारा मले. प्रकार समझा. देन का प्रयत्न किया जायेगा। किमविकिम्। . . : . ....
नोट- इस लेख में यह बताया गया है कि महाबोराचार्य स्त गणितसार संग्रह में २४ प्रमाण को गिती है और इस से अधिक की गिनती नहीं देखने में आती। परंतु हमने 'दिगम्बर जैन वर्ष म अक १ वार सन्धत २४४९ में "कायसी": नामक लेख में
७ अंक प्रमाण की गिनती और नाम यताये हैं जो इस प्रकार है:.:..:
. . .
. . .:: यह, दयं, संयं, सहन, दहसहन्न, ललं, पहलखे, कोई, : दहकोड, अंडव, दहश्रहवं, खडबं, बहजहर, निजरयं, दहनिखरत सोराजं, दहसोरज, पदम, दहपदम, पारध, दहपारधं, संख, दह संखे, रतन, . बहरतन, 'नखङ, दहनखडं; सुघट, दहसुघर, राम, .दहंगम, प्रसट, दहप्रसट, हार, दहहार, मन, दहमन, बजर, वद. वंजरु, सम, इइसकं, स.के, दहलेक, असंखी, दहभसंख, नोली. दहनील, पारदहपार, का, दहकंगा, खीर, दहखीर, पांच, दही परखा, घल, दुहवल । ........ .......
यह गिनतों के नाम हमने एक हस्तलिखित प्राचीन पुस्तक से प्रकट किए थे। इस प्रकार इस से ज्यादे को गिनती के नाम भी शायद किसी और प्राचीन गंध में मिल जाना सम्भव है जिसमें कि यह ऋषभनिर्वाण सम्वत् के ७६ अंक उंगमता से गिने जासकें।
45....
संपादक