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मानामर, दर्शन पाशदि सें ईश्वर भकिा का एक नमूना माजुम हो सका है भक्तिवस हृदय भोज कर रोमांच खड़े हो जातं है । जैनियों को यह म समभाना चाहिए कि जैन धर्म हमारे कुल को दोचत है यह शिने धर्म जीव मात्र का धर्म है। जिन या जैन से भगवान का असे है. कि जिन्होंने कर्म शत्रो को जीत लिया है इस लिए उस धर्म को जैन धर्म करते हैं । यह जैन धर्म "दिगम्बर से मंगा हुआ है यांनी जिस गुरु के दिशाएँ ही बन हो यानी निन्याने धर्म पक्ष रहित बीतगगता लिए हुए हैं। हमको चार रनों की परीक्षा अवश्य करनी चाहिए क्यों कि अमकों हमारे भदान मुताबिक फल मिशेगा। यथावत प्रदान करने वाले कोसम्यगदृष्टी ( True believer) कहते हैं । . ... . . . . . . . . .... . . . .
सांचों देच. सोई जामें दोष को न लेश कोई। वहीं गुरु नाके उर काहू की न चाह है। सही . धर्म बद्दी. जहां करना प्रधान कही ।
ग्रन्थ जहां आदि अन्त .एक. सौ निवाह है ॥ .. यही जग रत्न चार इन को परख यार । : सांचे लेहु झूठे डार नर भी को लाई है । '
मानुप विवेक विना पशु की समान गिना। . बातें यह ठीक पात पारनी सलाह है ॥
....... और सुनियेपंडित भूदरदास जी का पट कमोपदेश । अध अंधेर आदित्य नित्य स्वाध्याय कारज्जै। . सोमोपम संसार सापहर तप करलिज्जै ॥.. ..