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श्रीमूलसंघजानि नदिसंघस्वस्मिन् बलात्कार गणोतिरम्यः । सवाभवत् पूर्व-पदांश चेदी श्री मायनन्दी नर देव वैद्यः ॥ २ ॥
यशकीर्तिर्यशानंदी देवनंदी मतिः । .... पूज्यपादः पराख्येयो गुणनंदी गुणाकरः ॥ ८॥ ..
माणिक्यनंदी मेघेन्दः शान्तिकोतिर्महाशयः । मेरुकीर्तिमहाकीतिविश्वनंदी विदांवरः ॥ ११ ॥
चौथी पट्टावली को आपने अभी प्रकाशित नहीं किया है। . अभी केवल ३ पट्टावलियां ही प्रकट हुई हैं। इन पर से ही यह मलीं मांति अंकट होजाता है कि प्राचीन काल में जैसवाल जाति. इतनी समाद सम्पन्न और विद्यासे युक्त थी कि इसमें स्वामी मायनंदी, यशकीत और मेरुकीर्ति जैसे मचण्ड पाण्डित्यपूर्ण . . आचार्य विद्यमान थे। जिनके कारण जैसवाल जाति आज भी .. गौरवान्वित हैं।
। जैसवाल भाइयों को अपना पूर्व गौरव स्मरण कर उसी. . - उच्च स्थान को प्राप्त करने के लिए पूर्ण परिश्रम करना चाहिए।
एक प्रशस्ति में जैसवाल
सहयोगी जैन मित्र के ४५ अङ्क में पूज्य पं० पेनालाल . जी बाकलीवाल ने जयपुर के पाटोदी के जैन मंदिर के एक ग्रंथ मौकत उत्तरः पराण की प्रशस्ति मकट की है, जिससे विदित होला है कि यह ग्रंथ संवत् १५७५ में (चारसौं वर्ष पूर्वः) चौधरी टोडरमल्ल जी जैसवाल ने लिखा था। प्रशस्ति की प्रतिलिपि । इतिहास प्रेमियों को उपयोगी होगी अंतएवं यहां उधृत की
जातीहै- "इति उत्तरपुराण टिप्पणक प्रमाचंद्राचार्य विरचितसमाप्त “अथ संवत्सरेऽस्मिन श्री भूप विक्रमादित्य मताब्दः संवत् १५७५
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