Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 39
________________ भाव रखो.हुए गुण ग्रहण करेंगे जैस हँस मिश्रित दूध-जल में से दूध को पीलेता है और जल को छोड़ देता है। हम को नित्य पद कर्म करने चाहिए ।यानी (१)व पूजा (२) गुरु स्तवन (३) खाध्याय (४) शयम (५) चप और (६) दान । इन का पूरा २वर्णन जिनं आग से मालूम करना चाहिए। कुछ संक्षेप से भागे लिखता हूं। ' यह जीव अनादि काल से संसार के दुःखों से कष्ट उठा रहा है। और इसके साथ क्रोध मान माया लोभादि कषायों का इस तरह सम्बन्ध हो रहा है जिस तरह कि "तिल में तेल इस मात्मा के गुण का प्रकाश करना, निजंग और सम्बर द्वारा, यही मुख्य कर्तव्य है । जीप रास एक है जैसे आम शब्द एक है। परंतु इस की किस्में कई कई प्रकार को हैं जैसे बम्बई, मालदई, तोतापरी इत्यादि इसी प्रकार हर जीव की आत्मा भिन्न २ है और शक्ति घरावर है मगर वह शक्ति कर्म अक्षा दब कर प्रयक प्रयक है । इस लिए पुदगल ग्रहण मित्र २ है । जैसे-मनुष्य, देव, तिचंच नारकी इत्यादि। . . "सम्बर का अर्थ आश्रव का रोकना यानी कर्मों को न माने देना और "निर्जरा" का अर्थ लगे हुए कर्मों को दूर करना जैसे एक रत्नमई पटियाँ कूड़े से दवी हुई है । उस पर कूड़ा न गिरने देना नाम सम्बर है और जो कूड़ा पड़ा हुआ उसको साफ कर देना नाम निर्जया है। . इसी तरह इस जीव का गुण स्वभाविक केवल ज्ञान है सो सुनिमित्त द्वारा प्रगट हो सकता है। इस जीव का गृह मोक्ष है कर्मों बैस सार में भमण कर रहा है। इस आत्मा को तीन अवस्था होती हैं, यानी वहिरात्म, अन्तरात्म और परमात्म । ., जिसकी मारमा पर द्रव्य में ममत्व करती है जैसे यह मेरा यह तेरा इत्यादि, यांनी अज्ञान अवस्था उस्को बहिरात्म कहते हैं। जब जीव इस अवस्या को छोड़ शानरस पीता हुआ निजानंद रस में भाता है तब इस की हालत संसारियों के निकट आश्चर्य जनक

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