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(.२८' ) . हो जाती है और संसारी विभून प्रियं नहीं लगती है । यहाँका कि संहस्थ अवस्था..को त्याग देता है और अपनी प्रान्मा में लीन हो जाता है । गोनी---.. ... ... ... ... . -: "ऐका की निस्पृह शांतः पाणिपात्रों दिगम्बरः। ..
कदाई “ संभविष्यामि कनिमलनक्षमः . . • . इस पवित्र इच्छा को अपने शुद्धान्त:-करण में रखते हुए सांसारिक सुखोत्पादक सार्वभौमिक सम्पत्ति को लात मार कर निर्जन वन में पर्वत की कन्दराओं का आश्रयं लिया करते हैं और संसार महीरुहको निमूल कर स्वशुद्धात्मस्वरूप मोक्ष नगर का मार्ग सरल किया करते हैं। . . . ...सो ऐसी अवस्था को. अंतरात्म या महात्मा कहते हैं। __ घोर तपों और शाम द्वारा जब जीवयागे बढ़ता है तो घातिगमोह
नीय; दर्शनावर्णीय, ज्ञानावर्णीय और अंतराय ) कमी का क्षय कर कवलशान उपार्जन कर "परमातम अवस्था में पहुंच जाता है। यानी ईश्वर परमात्मा, सर्वज्ञ हितोपदेशक वीतराग हो जाता है। जिनको खमेव निक्षरीय वाणी दिव्य ध्यानि चांदनी सी वो. ..करती है, जैसे खमेव जल बरसता है । उनके तीन लोक दर्पण बत ज्ञान में झलकता है । आयू कम ( अंघातोय कर्म ) के पूर्ण होने पर सिद्ध हो जाते हैं यानी तीन लोक के शिखर पर जा विराजते हैं। इस जीव का स्वभाव उर्द्ध .गमन है कमी से रुक कर संसार में भटकता है जब कर्मों को क्षय कर देता है. तब इस को रोकने वाला कोई नहीं । आवागमन मिट गयो इस लिए, पुद्गल रहित हो गए । 'निरजन निराकार पदग्रहण हो : गया।
सारी जीव इन को सही नाम से पुकार. कर अपना कम ..रूपी मैल धोते हैं । जैले खटाई द्वारा वर्ण धोया जाता है।
उन नामों को मँन भी कहते हैं । उस में अचित्य शक्ति है यानी God- (गोड) खुद्रा, परमात्मा, ईश्वर, सर्वन केवल ज्ञानी, बृह्मा,
अहंत, सिद्ध, जिनेंद्र, जिम भगवान, जिन गंज, बोतराग, तीर्थका • स्यादि इस तरह वह हमारा हितकारी है। उनकी धर्मोपदेश हम