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के वनों को प्राप्ति हो जाती हैं । इस संख्या में से ४२ सान्न वर्ष: घटा देने से जो संख्या प्राप्त होगी वह पूर्ण चतुर्थ काल के वर्षों को संख्या है जो ७६ प्रमाण हो है। . . .
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. . (५) श्री अपम देव. जी माराज़ के निर्वाण चतुर्य कालं के प्रारम्भ में ३ वर्ष साढ़े आठ मान पूर्व हुमा और श्री. महायोर जोका निर्वाण पञ्चम काल के प्रारम्भसे इतने ही काल अर्यावर्ष • सा माह पूर्व हुआ। इस लिए प्रथम तीर्य कर के निर्वाण शल से
अतिम तीकर के निर्वाण काल तक का अंतर ठोक उतना ही है जितना पूर्ण चौथा काल ।.......: ...शान प्रमाण-श्री पन्न पुराण-पर्व २० जहां चौथे काल का 'वर्षन करते हुए २४ तो करों के अंतराल कालका कथन पूर्ण किया है। तथा हरिवंशपराण सर्ग ६० श्लोक ४-६, ४, जहां,२४ तीर्थकरों के अंतराल कालादि के कथन को पर्ण कर के श्री महावीर, स्वामी के गणधरों की आयु का कथन है उस से भागे।.. . . (६) अब यदि प्रथम तीयीकर के निर्वाण से अंतिम के निर्वाण तक के अंतराल काल अर्थात पूर्ण चतुर्थ काल के वर्षों की. संख्या में श्री वीर नि० सम्वत् जोड़ दें तो हमारा अभीष्ट श्री ऋषभ निर्वाण सम्वत् प्राप्त हो जायगा जिस के वर्षों को संखा वही है जो कई जैन समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी है। ....... ...नोट-जिन महाशयों को यह भी जानना अभीष्ट हो कि 'इतने.अधिक बड़े पल्य में भरे गए भोग भूमि के ७. दिन तक की वयवाले में के.बालक के बहुत ही छोटे छोटे रोमों या वालापों को उपरोक्त संख्या ४५ अंक प्रमाण किस प्रकार निकाली गई है वह पूर्वोक्त अधों के इसी विषय सम्बंधी कथन को ध्यान पूर्वक पढ़ें।