Book Title: Dharm Jain Updesh
Author(s): Dwarkaprasad Jain
Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh

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Page 33
________________ (३) यो तत्वार्थ सूत्रत्रीको अर्थ प्रकाशिका टोका अध्याय ३.. सूत्र ३२ को प्यालया:. . .. (४) नो तत्वार्थ सूचजीको सर्वार्थसिद्धि भापाटोंका, अध्याय . ३, सूत्र २७ को व्याख्या . .... ... . . (५७.श्रीमान पं० धानवरायजोहंत चर्चाशतकका प ३३. और उसकी व्याख्या :: :: : :. . ६)यीहरिवंश पुसणं मापा टीका का सर्ग:: .. (७) मी त्रिलोसारंजीकी:मापा टीका श्रीमान पं टोडरमल जो हवका गणित भाग इत्यादि देखें। . ... ... ... .. (२) व्यवहार पल्य के रोमों की संख्या. को १०० में गुणा करने से जो सख्यामाप्त होगी वह एक पल्यापम काल 'क वर्षों की संख्या है. जिसमें उपरोक्त २७ अङ्क और २० शून्य सर्व ४७ अंक है। ...... ...... . . . :...:. ..... .. .. . .. . . शास्त्र प्रमाण- उपरोक्त ग्रन्थ । ... : नोट-जिसे पल्य अर्थात खत्ती या गड़े से उपमा दो जाय उस.. "पल्योपम" कहते हैं । इस लिए जिसे हिंदी भाषा प्रथो में बहुधा. पल्यकाल बोला जाता है वह वास्तव में पल्योरम काल है : पल्य तो केवल गढ़ ही का नाम है. जिस कालादि की गणना.. करने के लिए तीन मैदा अर्थात व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य, और श्रद्धा पल्या में विभाजित किया गया है और जिन से यया. घोग्य स्थलों पर कालादि.की बड़ी गयानानों में काम लिया जाता है।.. (३) इस कोड़ा कोड़ों ( १० करोड़ का करोड़ गुणा : मर्यात एक पापल्योपमः का एक सागरोपम(जिसे संघण सागर

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