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:: .एक, दश, छत, सहस, दश सहस, लन्न, दश वक्ष, कोरि दंश कोटि वुद दश अर्बुद, नई दश खर्च, नीलं, दश नीला पड़ा, दश पञ्च, शङ, दश शङ्ख, महाशत यहाँ २० अङ्ग प्रमाण गिन्तों है। इस से आगे एकही, दश एकहो, शत एकटी, सहस एकछी, दश सहसू एकही, अादि महा शङ्ख एकटा तक, २० श्रक प्रमाण ४० अंक तक एकटी के स्थान है। इसी प्रकार एकही के स्थातो की तरह पल्यः सागर और कल्पः के बोस वोस स्थान है जिस से. महाशङ्ख कल्प तक एक एक अङ्क अनुक्रम से चंढ़ कर १०० अंक प्रमाण संख्या हो जाती है। कल्य में आगे दुकट्टी, त्रिकष्टो; 'चकठों, पकट्ठी, पकटो, सकटी, अकटो, नकटी, और दकही में से प्रत्येक के सौ २ स्थान इस प्रकार हैं कि प्रथमं के १०० स्थान वाचक शब्दों के प्रांगें पकड़ी आदि . के सदृश, दुकही आदि: मोद लगा दिए जाते हैं। इस प्रकार एक .२ स्थान बड़ती हुई संख्या हजार १०००) स्थान तक पहुंच जाती है।
नोट- यहाँ इतना ध्यान में रखना आवश्यक है कि संख्या लोकोत्तरमान के जो उपरोक्त मूल तीन और विशेष २१. भेद हैं।
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*२ को ६५. जगह रखकर परस्पर गुणा करने से जो १८६७४४४७३७०२५५१६१६ संख्या २० अङ्क प्रमाण आती है। उसे भी एकही कहते हैं । यह संख्या २० अक प्रमाण संस्था के जघन्य भेद से अधिक है इसी लिए इकाई दहाई के हिसाय में । अंक प्रमाण संख्या का नाम भी एकट्ठी" माना गया है।
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