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१४.१५.
उन में सख्यात की गणना १५० अंक एमाण संख्या तक इस से आगे असख्दान को गिती है।
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इस लिए १५० अङ्क अर्थात् इकाई दहाई के १५० स्थान स आगे इकाई दहाई स े गणना करने की छ: धावश्यकता ही नहीं. पडतो श्रीर जो कुछ पड़ती है वह अमीन आदि के जघन्य,
मध्यम, उत्कृष्ट आदि' अन्य १८ भेदा से पूरी कर ली जाती है। और यदि किसी को विशेष जानकारी के लिए अनावश्यक होने पर "भी आवश्यक्ता जान पड़े तो उपरोक्त सहस (१००) श्रंक तक इकाई दहाई के स्थान लिखे दिए गए हैं।
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नांगे भी उत्पल्योग, दुपल्यांग, त्रिपल्यांग आदि अनेक स्थान इकाई दड़ाई के हैं जो निःकारण लेख चढ़ जाने के भय अनावश्यक समझ कर नहीं लिखे गए
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पण्डित द्यानतरायजीस्त चर्चा शतक का पद्य नस्वर ३३. और उसकी व्याख्या देखें । इस विषय में मुझे स्वयं बड़ी अर्थात मेरी निज सम्मति में केवल १५० अक प्रमाण तक हो सख्यात की गिनती नहीं हैं क्योंकि जघन्य परीता संख्यात स े एक कम तक सख्यात की गणना
संशय
है और जघन्य परीता सख्यात बहुत ही बड़ी गणना का नाम है । इस लिए विद्वान महाशय : पण्डित द्योगतरायजी के उपरोक्त पद्म के इस भाग का यथार्थ अर्थ ग्राम प्रमाण सहित प्रकट करने
कपा
(लेखक )