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..इन सबका सविस्तर वर्णन उदाहरण आदि सहित जानना होतो वृहत् धारा परिकमाँ" और "महावीर गणित. सार संग्रह" आदि जैन गणिन ग्रन्यो से तथा श्री त्रिलो. कसार और श्री गोमट्टसारादि जैन ग्रन्थों के गणित भाग से देखें । यहाँ केवल इतना बताना हो। अभीष्ट है कि इतना बड़ा . ७६ अंक प्रमाण संख्या, पाला सम्बत किस प्रकार पढ़ा जा सकता है। इसके पढ़ने के लिए, कौन सी इकाई दहाई हैं? ..
ऊपर बताया जा चुका है कि "लौकिक गणित भाग के ई भेदों में एक चौथामेइ गणित मान, है । इसके अन्तरंगत । जो इकाई दहाई है वह उपरोक्त प्रकार २४ अंक प्रमाण है।
लौकिक कार्यों में इस से अधिक तो क्या इतने अशे तक को भी आवश्यक्ता किसी को नहीं पड़ती। परन्तु, लोकोत्तर गणित भाग में अवश्य अधिक की आवश्यक्ता पड़ती है। जिसके लिंद जैनाचार्यों ने उपरोक्त प्रकार संख्या लोकोत्तर मान में जन्य संख्यातं आदि उत्कृष्ट अनन्तानन्त पर्यन्त २१ मेदों और सर्वधारां आदि १४ धाराओं में तथा उपमा लोकोत्तरमान में पल्य, सागरादि द्वारा बड़े विस्तार के साथ आवश्यक्तानुसार सब ही कुछ समझा दिया है। इनमें से संख्या लोकोत्तरमान के अन्तरगत निम्न लिखित इकाई दहाई हैं जिसकी सहायता से यदि आवश्यकता पड़े तो हम ७६ अंक तो क्या सैकड़ो सहसो अंक तक की संख्या को बडो सुगमता से पढ़ सकते हैं।
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