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काटें, मिथ्यात्व की कारा
माया और दुःख से घिरे हुए इन्सान के लिए जितना दुष्कर सत्य को
'जानना है, उतना ही दुष्कर सत्य को स्वीकार करना भी है। विष में लिपटे हुए इन्सान के लिए अमृत पाना कठिन है, लेकिन उससे भी कठिन अमृत का आचमन करना है। मनुष्य को जितना ज्ञान होता है उससे अधिक उसे ज्ञान का अहंकार होता है। यह अहंकार ज्ञान को अज्ञान में बदल देता है। बुद्धिमत्ता का अहंकार व्यक्ति को बुद्धिमान नहीं बना पाता, वह दुर्बुद्धि का आचरण करता हुआ भी देखा जा सकता है। आंशिक बोध पाये हुए व्यक्ति का अपने आंतरिक अहंकार के कारण बोध भी अबोधावस्था में परिणित हो जाता है, लेकिन जागे हुए व्यक्ति के पास ज्ञान होता है, ज्ञान का अहंकार नहीं। उसके पास दृष्टि होती है, लेकिन उसमें मिथ्यात्व नहीं होता; बोध और सम्यक्त्व होता है।
हमारे यहाँ दो संस्कृतियाँ रही हैं-एक, जिसमें भगवान अवतार लेते हैं और दूसरी, जिसमें साधना के मार्ग से व्यक्ति भगवत्ता प्राप्त करता है, भगवान बन जाता है। एक ओर भगवान मनुष्य-रूप में जन्म लेते हैं, अपनी लीलाएँ दिखाते हैं और अंत में अपने भगवत्स्वरूप में लीन हो जाते हैं। दूसरी ओर एक इन्सान जब अपने जीवन में सुगति का मार्ग जान लेता है, अपने
काटें, मिथ्यात्व की कारा
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