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भीतर थी, भीतर तूफान उठ गया, तुम गेंद लेकर बच्चे को पीटने दौड़ पड़े। बीज तो भीतर पड़े ही रहते हैं, जब भी वर्षा होगी, अंकुर निकल आएँगे। लेकिन जो होश और बोध से भरा हुआ है। वह अहिंसक हो जाएगा।
उसी का जीवन सार्थक है जो अपने जीवन का स्वामी और मालिक है, वही ज्ञानी होने का हक भी रखता है।
एक व्यक्ति घर में बैठा था, दोस्त आए हुए थे। पत्नी से कुछ झगड़ा हो गया। पत्नी को गुस्सा आ गया, वह झाडू लेकर आ गई। पति ने देखा, दोस्तों के सामने इज्जत का सवाल था। वह झट से पलंग के नीचे जा घुसा। पत्नी झाडू फटकारे और कहे कि 'बाहर निकल'। 'नहीं निकलूँगा', पति ने कहा। काफी देर तक यही चलता रहा कि वह कहे, बाहर निकल और पति बोले, नहीं निकलँगा। आखिर अब यह निर्णय हो ही जाए कि घर का मालिक कौन है मैं कि तू ? आज पता चल ही जाना चाहिए। पत्नी ने कहा-पलंग के नीचे छिपा दबा बैठा है और स्वामी भी स्वयं को घोषित कर रहा है ?
ज्ञानी होने का सार यही है कि व्यक्ति जीवन में चलने वाली मूर्छा का त्याग करे। जीवन में उठने वाली राग-द्वेष की धाराओं का समापन करें। मानसिक, वैचारिक, शारीरिक या वाचिक हिंसा से व्यक्ति अपने आपको बचाए। भगवान कहते हैं, आत्महितैषी पुरुष सभी तरह की हिंसा का त्याग कर देते हैं। जीवदया करके स्वयं पर दया करते हो। यह मत समझना कि जीव-दया कर रहे हो तो अहिंसक हो गए। तुमने अपना हित साधाआत्म-हितैषी ! सब चीजें वर्तुल घूमती हैं। अरे कहीं से दुर्गंध भी आ रही हो तो सुगंध का बीज बोओ, शायद वह दुर्गंध भी सुगंध में बदल जाए। पत्थर पर भी आती-जाती रस्सी के निशान पड़ जाते हैं, फिर यह तो मनुष्य का हृदय है। यहाँ तो परिवर्तन बहुत जल्दी संभव है। ___ आज के सूत्र हम जीवन में उतारने का प्रयत्न करें तो हमारा जीवन निर्मल, पवित्र और ज्ञानवान हो जाएगा। आप प्रयास करें, महावीर सदा आपके साथ हैं।
धर्म, आखिर क्या है?
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