Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 132
________________ सृजनात्मक बनो। अधिकांशतः व्यक्ति मिटाने में बल महसूस करता है। दुनिया में सृजनात्मक लोग बहुत कम हैं। मनुष्य जिस ऊर्जा को लेकर पैदा होता है उसके दो ही उपयोग हैं-सृजन या विध्वंस। जो झगड़ालू नहीं हैं, विनम्र हैं, वे उदार, सरल और सौम्य होते हैं और कुछ बनाने में लगे रहते हैं। जो मिटाने में लग जाते हैं, वे हर चीज पर झगड़ते और विवाद करते हैं। भगवान कहते हैं, कुछ लोग वैर की गाँठ बाँध लेते हैं, कुछ लोग झगड़ालू वृत्ति के होते हैं और कुछ धर्म एवं दया से शून्य होते हैं। तुम अपने द्वारा किए जाने वाले धर्म और दया पर जरा नजर डालो। तुम मंदिर जा सकते हो, उपवास कर सकते हो, लेकिन संभव है कि तब भी धर्म आत्मसात् न हो रहा हो। देखना कहीं तुम धर्म की फेहरिस्त तो नहीं बना रहे कि तुमने इतनी तपस्या की, इतना दान दिया। ऐसा करके तुम अपने अहंकार को ही पोषित कर रहे हो। तुम दया भी करते हो तो दूसरों को दिखाने के लिए। किसी भिखारी को कुछ पैसे देते हो तो आसपास देख लेते हो कि तुम्हारी दया और दान सब देख रहे हैं। अपने भीतर झाँककर देखो कि यह धर्म और दया किस प्रयोजन से कर रहे हो ? क्या सचमुच हमारे जीवन में धर्म और दया है ? भगवान आगे कहते हैं-धर्म और दया से शून्य व्यक्ति की प्रवृत्ति 'दुष्टता' होगी। तुमने देखा होगा कि कई बार विवाद हो जाता है, तुम जानते हो सामने वाला ठीक है, लेकिन तुम्हारे अहंकार की दुष्टता तुम्हें समझने नहीं देती और तुम चिल्लाते चले जाते हो। तुम्हारी दुष्टता बहुत छोटी-छोटी बातों में प्रगट होती है। सड़क पर चलते हो, छोटा बच्चा मिला, चाँटा मार दिया; गाय जाती दिखी, लकड़ी मार दी; पक्षी दाना चुग रहे हैं, पत्थर फेंक दिया उन पर; यह दुष्ट प्रवृत्ति है। और ऐसे लोग समझाने से भी नहीं समझते। जो समझाने पर भी नहीं मानता, भगवान कहते हैं ऐसा व्यक्ति कृष्ण लेश्या से घिरा है। वह अंधकार में ही जन्मता है, अंधकार में ही जीता है और अंधकार में ही चला जाता है। ऐसे लोग संसार में बंधनों का ही निर्माण करते हैं। अंतर्दृष्टि खुलने लगे तो कृष्ण लेश्या अपने आप तिरोहित हो जाएगी। ___ अगर रोशनी है तो परमात्मा की, और अंधेरा है तो मेरा, ऐसा जिसने समझा उसकी कृष्ण लेश्या टिक नहीं सकती। हम पहचानें अपने मन की स्थिति और वृत्ति। स्वयं को पहचानकर ही हम अपनी लेश्याओं के वर्तमान कृष्ण लेश्या का तिलिस्म 123 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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