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सको। ये शब्द बहुमूल्य हैं अगर तुम इनका अनुसरण कर सको। इन्हें फिर से जीवंत करने के लिए इन्हें दोहराना नहीं है वरन् इनमें उतरकर अनुभूति से गुजरना है। सूत्र है
आरूहवि अंतरप्पा, बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण।
झाइज्जइ परमप्पा, उवइटुं जिणवरिंदेहिं।। जिनेश्वरदेव का कथन है कि मन, वचन और काया से बहिरात्मपन के सभी संयोगों का त्याग कर, अंतरात्मा में विचरण कर, परमात्मा का ध्यान करो।
तीन शब्द हैं बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। इन्हें समझें। जो बाहर के संसार से जुड़ी है वह बहिरात्मा है। जो संसार से, पुद्गल से जुड़ा है वह बाहर ही देख रहा है। उसका रस विषय-वासना और कषाय में है। अंतरात्मा जब ध्यान की यात्रा शुरू होती है भीतर की ओर। जब बाहर की निरर्थकता नजर आने लगती है और विवेक का जन्म होता है, तुम भीतर की ओर लौटने लगते हो। और परमात्मा जब बाहर-भीतर दोनों खो गए। तुम वही हो, लेकिन तुम्हारी दिशा बदल जाती है। अभी तुम घर के बाहर जाते थे, अब घर की ओर वापस आने लगे, फिर आत्मलीन हो गए। स्वभाव उपलब्ध हो गया। स्वयं की ओर लौटोगे तो अपने स्वरूप को उपलब्ध हो जाओगे। स्वरूप में स्थिर होना ही स्वास्थ्य का सर्वोच्च रूप है। स्वस्थ यानी स्वयं में स्थित; परमात्मा की उपलब्धि, परमात्म-स्वरूप की प्राप्ति। ___ आत्मतत्त्व में अनंत शक्ति है जिसके सम्मुख ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ श्रीहीन हो जाती हैं। हमारी ऊर्जा जब ऊर्ध्वगमन करती है तो परमात्म-मिलन का सेतु बनती है और वही ऊर्जा अधोगामी होकर संसार की उठापटक का परिणाम देती है। ___आज के सूत्र महत्त्वपूर्ण हैं, अगर इनमें स्वयं को डुबोओगे तो ये तुम्हारे लिए जीवंत हो जाएँगे। महावीर की साधना में मन, वचन और काया के तीन अवरोध हैं। काया यह शरीर तो हमें दिखाई पड़ता है और इसको ही हम सबकुछ मान बैठे हैं। कहा जाता है कि जब सिकंदर विश्व-विजय के लिए निकला तो उसके गुरु ने कहा, 'भारत से तुम एक साधु लेकर आना।' अपनी विजय के मद में चूर जब सिकंदर भारत से जाने लगा तो अचानक गुरु के
परमात्म-साक्षात्कार की पहल
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