Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 153
________________ वचन याद आ गए। उसने सैनिकों को भेजा किसी साधु को पकड़ लाने के लिए। सैनिक एक साधु के पास पहुंचे और सम्राट का हुक्म सुना दिया। साधु ने पूछा, 'कौन सिकंदर, कैसा सिकंदर, मैं किसी के पास नहीं जाता। उसे आना हो तो यहीं आए। सैनिकों ने साधु की अक्खड़ता सिकंदर को बताई। सिकंदर हैरान हो गया। एक अदना-सा आदमी उसके हक्म की तामील से इंकार करता है ! पर शायद अंदर से बेचैन भी हो गया कि उसमें ऐसी क्या खूबी है जो इतनी दिलेरी से सिकन्दर के हुक्म को नहीं मान रहा। ___ कहते हैं, स्वयं सिकन्दर उस साधु के पास पहुंचा और यूनान चलने का हुक्म दिया। हुक्म की तामील न करने पर सिर धड़ से अलग करने की धमकी दी। साधु ने कहा, 'यह शरीर तो कब का मर चुका है। हम आज अपने सिर को धड़ से अलग होता हुआ भी देख लेंगे।' और सिकंदर जवाब सुनकर हतप्रभ रह गया। वह ऐसी बात तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि एक जीवित इंसान यह कहे कि शरीर मर चुका है और सिर को धड़ से अलग होता हुआ देखेंगे। क्योंकि सिकंदर ने केवल बाह्य शरीर ही देखा और जाना था। उसे अन्तरात्मा का तो कोई ख्याल ही न था। आत्म-साधक के लिए शरीर तो महज केंचुली जितना ही मूल्यवान होता है। जिसके लिए यह बोध रहता है कि केंचुली, जिसे आखिर उतरना ही है। साधारणतः लोग शरीर के तल पर जीते हैं। जो थोड़े से जागरूक होते हैं वे शरीर के बाहर, शरीर से ऊपर सोचना शुरू करते हैं। उन्हें दिखाई पड़ता है कि वे शरीर नहीं हैं, वे केवल विचारों में जीते हैं। विचार जब गहराई में उतर जाता है तब शरीर जुदा हो जाता है। खिलाड़ी मैदान में खेलता है, खेलते वक्त चोट लग जाती है, खून बहने लगता है, उसे पता ही नहीं चलता। दर्शक देख रहे हैं पर वह खेलने में तल्लीन रहता है। अभी सारा ध्यान दूसरी ओर है, शरीर से दूर। खेल बंद हो जाता है, वह अपने शरीर में लौटता है, तब पीड़ा-दर्द-खून का अहसास होता है। वह चकित होता है, इतनी देर मुझे पता क्यों नहीं चला ! तुम्हें भी बहुत बार ऐसे अनुभव होते होंगे। कभी ऐसा होता है कि तुम भूखे बैठे हो और विचारों में तल्लीन हो तो भूख का पता नहीं चलता या तुम कहीं बाहर से आए हो, शरीर थका हुआ है और तुम्हारा बेटा अचानक गिर धर्म, आखिर क्या है ? 144 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162