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लेश्याओं के पार धर्म का जगत .
प्रत• राहगीर थे। वे जंगल से गुजर रहे थे, लेकिन चलते-चलते मार्ग
भटक गए। रास्ते में कोई गाँव न आया, कोई ठिकाना भी नजर नहीं आया और उन चलते हुए राहगीरों को भूख सताने लगी। कुछ देर बाद उन्हें फल से लदा एक वृक्ष दिखाई दिया। उन्हें फल खाने की इच्छा हुई। एक ने सोचा कि भूख बहुत तेज है एक-एक फल क्या तोड़ेंगे, जड़मूल से काटकर ही इसके फल खाए जाएँ। दूसरे राहगीर के मन में आया कि छः लोग हैं एक-एक क्या तोड़ें, इसका स्कंध ही काट लेते हैं। पेड़ गिर जाएगा और हम खा लेंगे, पेड़ पुनः भी उग जाएगा। तीसरे राहगीर ने सोचा कि वह जो मोटी-सी शाखा दिखाई दे रही है, उसे ही तोड़ लेंगे। उसमें फल भी बहुत लगे हैं। चौथे ने सोचा कि एक उपशाखा ही तोड़ी जाए, उसी के फलों से हमारा काम चल जाएगा। पाँचवे के मन में विकल्प आया कि भूख तो लगी है, पर पूरे वृक्ष को तोड़ने से क्या लाभ, स्कंध काटने का क्या मतलब, शाखा-उपशाखा भी क्यों तोड़ी जाए, केवल फल ही तोड़ लिए जाएँ। छठे राहगीर के मन में कुछ और ही विचार आया। उसने सोचा कि फलों से लदा हुआ वृक्ष है, जरूर कुछ फल नीचे भी गिरते होंगे। हम तो उन टपके हुए फलों को ही चुनकर खा लेंगे। लेश्याओं के पार धर्मका जगत
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