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स्वरूप से आगे बढ़ सकते हैं। उन्हें निर्मल करने के लिए प्रयत्नशील हो सकेंगे।
ध्यान रखें क्रोध कहीं हमारी आदत न बन जाए। वैर की गाँठे न बंध जाए। हम क्रोध की बजाय शांति को अहमियत दें। वैर की बजाय भाईचारा
और प्रेम को मूल्य दें। दुष्टता की बजाय सभी के प्रति शिष्टता को महत्त्व दें यही वे तीन सूत्र हैं, जो हमें कृष्ण लेश्या के दलदल से बाहर लाएँगे और हम शांति, शुद्धता और निर्मलता की ओर सहज ही प्रवृत्तमान होंगे।
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धर्म, आखिर क्या है ?
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