Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ में वह दिव्य चेतना समाहित है। जब तुम कहते हो परमात्मा घट-घटवासी या आत्मा का मूल स्वभाव है, तो फिर उसकी तलाश क्यों ? उसकी खोज क्यों ? यह तो ऐसा ही हुआ कि बच्चा तो बगल में है और शहर भर में ढूँढ़ रहे हो। तुम्हारी परमात्मा की खोज भी ऐसी ही है। ___एक बार ऐसा ही हुआ, सूफी संत राबिया अपने घर के बाहर सुई ढूँढ़ रही थी। इधर-उधर खूब ढूँढ़ा, पर सुई न मिली। हमारे यहाँ जैसे मीरां और सहजो हैं, वैसे ही सूफी-परम्परा में राबिया भी एक उच्चकोटि की संत थी। अन्य लोग उससे सीखने आया करते थे। उसका जीवन बोलता था, वह मुँह से बहुत अधिक बातें नहीं करती थी। मुँह से तो अधिक बोलते हैं, जो जीवन में आचरण नहीं कर पाते। __उधर से कुछ फकीर गुजर रहे थे। उन्होंने राबिया को कुछ ढूँढ़ते हुए देखा तो पूछ ही लिया, 'राबिया क्या खो गया है, जो ढूँढ़ रही हो?' राबिया ने कहा, 'सुई ढूँढ़ रही हूँ।' फकीरों ने सोचा कि अकेली कैसे ढूँढ़ पाएगी। एक तो वृद्ध, दूसरे साँझ भी ढलने आ रही है। चलो, हम भी उसकी सहायता कर देते हैं। वे भी कुटिया के बाहर सुई ढूँढ़ने लग गए, पर सुई थी कि मिली ही नहीं। कोई आधा घंटा बीत गया होगा कि एक फकीर ने पूछा, 'राबिया, तुम्हारी सुई कहाँ खोई थी ?' राबिया ने कहा, 'सुई तो कुटिया में ही खोई थी।' फकीरों ने कहा, 'जब सुई कुटिया में खोई तो बाहर क्यों ढूँढ़ रही हो?' राबिया ने कहा, 'कुटिया में अंधेरा है, शाम हो रही है, सूरज ढल रहा है, तो वहाँ मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए सोचा जहाँ प्रकाश है वहीं ढूँढ़ लूँ। . फकीरों ने कहा, 'राबिया, हम तो तुम्हें ज्ञानी समझते थे, लेकिन लगता है, बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि सठिया गई है, वरना सुई बाहर नहीं ढूँढ़ती। अरे, जहाँ सुई खोई ही नहीं है वहाँ चाहे प्रकाश हो या न हो सुई तो नहीं मिलेगी।' ____ राबिया हँसी और कहा, 'वही तो मैं तुमसे कहना चाहती हूँ। तुम खुदा की खोज में कभी मक्का, कभी मदीना जाते हो, लेकिन मैं यही कहना चाहती हूँ कि जो भीतर विद्यमान है, उसे बाहर क्यों तलाश रहे हो ?' ___अरे मनुष्यो, तुम अंधकार में जीवन जीने के इतने अभ्यस्त हो गए हो कि प्रकाश की बौछार में चकाचौंध हो जाते हो। तुमने जन्मों-जन्मों से अँधेरे परमात्म-साक्षात्कार की पहल 139 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162