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भी खड़ी थी। उसका आँचल नीचे लटका हुआ था । बस चलती, हवा लगती और पल्ला लहरा-लहराकर मुल्ला के पाँवों को स्पर्श करता। नसरुद्दीन ने पत्नी से कहा, यह महिला मुझे भगवान बुद्ध मान रही है और अपने पल्लू से मेरे पाँव पौंछ रही है । थोड़ी देर बाद जब बस झटके से रुकी तो चप्पल सहित उसका पैर नसरुद्दीन के पैर पर लगा, तो पत्नी जो अभी तक चुप थी, बोली, सावधान, अभी तक तो बुद्ध मान रही थी, पर अब बुद्ध मान रही है, आपकी असलियत पहचान गई है ।
भगवान के सूत्र यही संदेश दे रहे हैं कि व्यक्ति वैचारिक रूप से स्वयं को पवित्र करें और कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, पद्म लेश्या में प्रवेश करते हुए बिल्कुल शुक्ल रूप में अपने आपको अवतरित करे ।
कल हमने कृष्ण लेश्या के बारे में संवाद किया था, आज नील लेश्या के संबंध में चर्चा करेंगे। सूत्र है
मंद बुद्धिविहीणी, विव्विणाणी य विसयलोलो य । लक्खणमेयं भणियं समासदो णील लेसस्स ।।
भगवान कहते हैं, 'मंदता, बुद्धिहीनता, अज्ञानता और विषय - लोलुपताये नील लेश्या के लक्षण हैं
हर व्यक्ति के विचारों के स्तर से व्यक्ति का जीवन प्रभावित होता है । यहाँ तक कि आसपास का वातावरण, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी भी प्रभावित होते हैं। आप पेड़ों के पास, फूलों के पास आनन्द से भरकर जाएँ तो उनमें भी प्रसन्नता का स्फुरण होगा। पश्चिम में पौधों के ग्राफ बनाए गए तो पता चला कि जब कुल्हाड़ी लेकर काटने के भाव से पौधों के पास जाते हैं तो वे सिकुड़ जाते हैं। अभी तो कुल्हाड़ी चली ही नहीं है, काटने का केवल विचार आया है और पौधे का ग्राफ बदल गया । भगवान कहते हैं कि व्यक्ति अपनी मंदता और बुद्धिहीनता से ऊपर उठे और अपने 'अज्ञान' को पहचाने और अपनी ‘विषय- लोलुपता' का त्याग करे ।
जनक जब अष्टावक्र से आत्मज्ञान की चर्चा करते हैं तो अष्टावक्र कहते हैं, केवल आत्मज्ञान की चर्चा करने से मुक्ति उपलब्ध नहीं होती। अगर तुम सच में ही मुक्ति चाहते हो तो अपने भीतर रहने वाली विषय-वासनाओं को विष के समान त्याग दो ।
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धर्म, आखिर क्या है ?
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