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तेजस् लेश्या के बाद में पद्म लेश्या । नाम से ही स्पष्ट है, पद्म यानि कमल । जैसे कमल जलाशय में रहकर भी उससे निर्लिप्त रहता है, मनुष्य को भी संसार के जलाशय में वैसे ही रहना होता है । सबके साथ फिर भी किसी के साथ नहीं । पद्म लेश्या के लक्षण बताते हुए भगवान कहते हैं कि त्यागशीलता, परिणामों के भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु और गुरुजनों की पूजा सेवा में तत्परता- ये ही हैं पद्म लेश्या के लक्षण ।
चागी भद्दो चोक्खो, अज्जवकम्मो य खमदि बहुगं पि। साहुगुरुपूजणरदो, लक्खणमेय तु पम्मस्स ।।
भगवान कहते हैं जीवन में हो त्याग, भावों में हो भद्रता, व्यवहार और व्यवसाय में हो ईमान और इनके अलावा हों, सरलता, सेवा और क्षमा की सौहार्दता । अगर हमें पद्म लेश्या की ओर अपने कदम बढ़ाने हैं तो हमें इन गुणों को अपनाना होगा । धर्म और उसकी बातें केवल सुनने के लिए नहीं होती। आखिर कोई भी प्रयोग परिणाम तभी देता है जब कोई उस प्रयोग से गुजरे । पद्म लेश्या एक प्रकार से व्यक्ति की धर्म लेश्या है और धर्म धारण करने की चीज है। जीवन में कमल जैसी हो निर्लिप्तता, जीवन में कमल जैसी हो सौम्यता, सुन्दरता और सुरम्यता । जीवन स्वयं फूल बन जाये पद्म लेश्या यही प्रेरणा है।
अन्तिम लेश्या है शुक्ल लेश्या । शुक्ल लेश्या यानि रास्ता पूरा पार हो गया। मंजिल की देहरी पर हमारे पाँव रखे जा चुके हैं । खोलना बाकी है केवल वह द्वार जो हमें मुक्ति महल के भीतर तक ले जाए। पक्षपात न करना, भोगों का निदान न करना, सबमें सर्वतोभावेन समदर्शी रहना, राग-द्वेष की हर सूक्ष्म-से-सूक्ष्म उठापटक से भी मुक्त रहना, यही सब होते हैं शुक्ल लेश्या के लक्षण | कृष्ण लेश्या मानव मन की कमजोरी है किन्तु शुक्ल लेश्या मन का संस्कार है। अब तक कपड़ा मैला था, तेजस्, पद्म और शुक्ल लेश्या के साबुन का उपयोग करते हुए हमने कपड़े को धोया, उजला किया, उपयोग किया, आनन्द लिया, मुक्ति की ओर अपने कदम बढ़ाते हुए कबीर कहते हैं—'ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया झीनी - झीनी बीनी रे चदरिया, जो साथ चलना है वह साथ हो लिया और जो छूट जाना है, आखिर छूट ही गया ।
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धर्म, आखिर क्या है ?
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