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जीवन में क्या कुछ ऐसा भी है जो उपयोगिता-शून्य हो। मैं तुमसे कहता हूँ ध्यान से सिर्फ ध्यान मिलेगा। ध्यान जब पूरी तरह बरसता है तो उसी बरखा का नाम परमात्मा है। तुम्हें प्रति पल देखना होगा, विचार करना होगा कि कहाँ-कहाँ कृष्ण लेश्या मजबूत हो रही है। ___ तुम्हारे अंदर अहंकार की गाँठ भी बहुत गहरी है। तुम जमीन-जायदाद को लेकर भी अहंकार से भर जाते हो। लेकिन क्या यह जानते हो कि विश्व के मानचित्र पर वह सुई की नोंक के बराबर भी न होगी। ___कहते हैं, दो चींटियाँ, जो सगी बहनें थीं, किसी जंगल से गुजर रही थीं। तभी सामने से एक हाथी आता हुआ दिखाई दिया। एक चींटी ने कहा, 'ए हाथी, किनारे चल, देखता नहीं हम चल रहे हैं।' हाथी भला चींटी की बात क्यों सुनता। वह मदमाती चाल में चलता ही रहा। तब दूसरी चींटी बोली, 'क्यों सुनाई नहीं देता क्या, मरने की इच्छा हो रही है क्या, हम तेरी हड्डी पसली बराबर कर देंगी। हाथी अनसुना कर चलता ही रहा। तब चींटियों ने सोचा, इसे सबक सिखाना ही होगा। एक ने कहा चलो मिलकर इसे मजा चखाते हैं। तब दूसरी ने कहा, रहने दो। लोग कहेंगे दो चींटियों ने मिलकर बेचारे एक हाथी को हरा दिया। चलो, दूसरे रास्ते से चलते हैं। यह अहंकार चींटियों का ! ___आदमी का बचपन असहाय, कमजोर होता है। वह माँ और पिता पर निर्भर होता है। माँ-बाप को बच्चे को बड़ा करना है, इसलिए बच्चों को कई दफा डाँटना भी पड़ता है, तो सही बातें भी बताई जाती हैं, गलत बातों से रोकना भी होता है। वह डाँट-डपट घाव बनकर भीतर रह जाती है। तब बच्चे बड़े होने पर बूढ़े माता-पिता को सताना शुरू कर देते हैं। अब बदला शुरू हो गया। माँ-बाप के साथ भी वैर की गाँठ बन जाती है। यह गाँठ जितनी गहरी होगी, कृष्ण लेश्या का परदा उतना ही सघन होगा। अहंकार और क्रोध की शक्ति निर्बल के सामने ही प्रकट की जाती है। एक चक्र चलता है-पति दफ्तर से बॉस की डाँट खाकर आता है, गुस्सा पत्नी पर उतारता है, पत्नी बच्चे पर और बच्चे अपने खिलौनों पर। फिर यही बच्चे बड़े होकर उसी क्रम को दोहराते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक बस में यात्रा कर रहा था, साथ में पत्नी भी थी। बस ठसाठस भरी हुई थी। वे दोनों एक सीट पर बैठ गये। पास में एक युवती
लेश्याओं के पार धर्मका जगत
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