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लक्षण हैं। इनसे बना है अँधेरे का पहला पर्दा। जीवन में अँधेरा है तो दीपक भी खुद ही जलाना है, क्योंकि अँधेरा भीतर है। बाहर के दीपक से कुछ न होगा, जब तक कि तुम भीतर अँधेरे को निर्मूल न कर दो। और ये जड़ें हैंस्वभाव की प्रचंडता।
आप देखते होंगे कि बहुत से लोगों को अकारण क्रोध आ जाता है। क्रोध उनका स्वभाव बन जाता है। इतना क्रोध कि लोग उनसे बात करने से हिचकिचाते हैं। आश्चर्य होता है कि जहाँ क्रोध का कोई कारण न था वहाँ भी क्रोध टपक रहा है। स्वभाव की प्रचंडता इतनी तीव्र होती है कि छोटे-छोटे निमित्तों से व्यक्ति अपने भीतर कषाय पैदा करता रहता है। सर्प के अंदर तो वैरी को देखकर डंक मारने की प्रवृत्ति जगती है, लेकिन कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जिनका स्वभाव ही डंक मारने का हो जाता है। उनका स्वभाव ही लोभ और अहंकार बन गया है।
कोई गलत काम हो और क्रोध आए, सामने धन मिले और लोभ जागे सामने सौंदर्य हो और कामना जागे, बात समझ में आती है, लेकिन स्वभाव की प्रचण्डता हर समय क्रुद्ध बनाए रखे तो बात चिंतनीय है। वहाँ गाली देने या न देने का सवाल ही नहीं है। वे गलियाँ खोज लेते हैं। जहाँ न हो गली, वहाँ भी निकाल लेते हैं। महावीर कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति जिसने क्रोध को आदत बना लिया है, कृष्ण लेश्या में दबाये रखेगा-क्रोध, रौद्रता, दुष्टता। ___ घर के अंधकार को तो हर कोई मिटा सकता है, लेकिन खुद के अंधकार को खुद ही मिटाना पड़ता है। इसलिए भगवान कहते हैं कि कृष्ण लेश्या से मुक्त होने के लिए स्वभाव की प्रचंडता त्यागनी होगी। ऐसी किसी वृत्ति को आदत बनने से रोकना होगा। क्रोधी आदमी अकेला भी हो, तो भी क्रोधी होता है। उसमें मानो क्रोध की तरंगें उठती रहती हैं। उसके हर क्रियाकलाप में क्रोध की छाया होगी। __व्यक्ति के भीतर स्वभाव की प्रचण्डता और वैर की मजबूत गाँठे हिंसा के निमित्त उत्पन्न करती हैं। तुम सड़क पर चलते हो, कुत्ता दिखाई पड़ता है, तुम उठाकर पत्थर मार ही देते हो। बगीचे में जाते हो, खिले हुए फूलों को तोड़ डालते हो और थोड़ी देर बाद उन्हें फेंक देते हो, ऐसी दुष्टता तुम्हारे भीतर है और अगर दुष्टता आदत बन जाती है, तो वह खतरनाक है।
धर्म, आखिर क्या है ?
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