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धम्मपद में बुद्ध कहते हैं-तुम जो हो वह अतीत में सोचे हुए विचारों का परिणाम है। तुम जो होओगे, वह आज सोचे गए विचारों का फल होगा। भगवान कहते हैं कि मनुष्य उसके अपने ही अतीत का परिणाम है। इसलिए जहाँ-जहाँ विचार है, वहाँ-वहाँ संसार है और जहाँ निर्विचार है वहाँ-वहाँ मोक्ष है, मुक्ति है। संसार और मुक्ति, तुम्हारे भीतर है।
भगवान महावीर ने एक बहुत महत्त्वूपर्ण शब्द का उपयोग किया'लेश्या' । 'लेश्या' का अर्थ है-मन, वचन, काया की कषाययुक्त वृत्तियाँ । मनुष्य की आत्मा बहुत से अच्छे और बुरे परदों में छिपी हुई है। आज के सूत्रों में भगवान इन्हीं परदों के प्रथम आवरण कृष्ण लेश्या के संबंध में बता रहे हैं। लेश्याएँ छः प्रकार की हैं जिनमें प्रथम है कृष्ण लेश्या। लेश्या रंगों का गहरा विज्ञान है। महावीर ने सबसे पहले रंग और मनुष्य की वृत्ति के अन्तर-संबंध में खोज की। आज तो रंगों का भी विज्ञान विकसित हो गया है, लेकिन महावीर पहले व्यक्ति थे जो जान गए कि रंग और मनुष्य के विचार दोनों का एकांतिक संबंध है। आज तो विज्ञान के द्वारा ऐसे चित्र खींचना भी संभव हो गया है। ___ हम महापुरुषों के चित्रों में एक विशिष्ट आभामण्डल देखते हैं। हर मनुष्य की अपनी आभा है जो उसकी मनोदशाओं का प्रतिबिम्ब होती है। महापुरुष जीवन के सत्य प्राप्त करते हैं। इस कारण उनके विचार निष्कलंक, निर्दोष और निष्पाप होते हैं, उनका आभामण्डल अत्यंत उज्ज्वल होता है और मनुष्य की जैसी मानसिकता होती है, जैसी वैचारिक क्षमता होती है उसके अनुसार उनका आभामण्डल निर्मित होता है। किसी का आभामण्डल काला है, किसी का नीला, किसी का कापोत और किसी का उज्ज्वल या धुंधला है और किसी का शुक्ल।
हिमालय की गुफाओं में असीम शांति मिलती है, क्योंकि वहाँ साधकों ने साधना की, उनकी शुभ तरंगें वहाँ विद्यमान हैं जो आगंतुक को शांत कर देती हैं, उसका उद्वेलन क्षीण हो जाता है। आप अनुभव करेंगे कि ऐसा स्थान जहाँ प्रतिदिन गलत कार्य सम्पादित किए जाते हैं, वहाँ जाकर बैठने मात्र से आपके मनोमस्तिष्क में अशुभ विचार आने लगते हैं और किसी अच्छे वातावरण के मध्य अच्छे विचार आते हैं। कचरे के ढेर से दुर्गंध और फूलों से सुगंध ही आती है।
धर्म, आखिर क्या है ?
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